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Bhuvneshwar Kumar Shares Video of Long Journey: भुवनेश्वर कुमार ने भारतीय टीम के साथ अपने 10 साल की सफर का वीडियो किया शेयर
पिछले एक दशक के दौरान भुवी ने भारतीय टीम के साथ कई बार अपने बेहतरीन गेंदबाजी के बदौलत भारत को जीत दिलाये है. भुवनेश्वर द्वारा पोस्ट किए गए हालिया वीडियो में हम उन पलों की झलकियां देख सकते है.
भारतीय तेज गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार ने भारतीय टीम के साथ अपने 10 साल के सफर का एक इमोशनल वीडियो शेयर किया. उत्तर प्रदेश के रहने वाले भुवनेश्वर ने 25 दिसंबर, 2012 को पाकिस्तान के खिलाफ T20I में अपनी भारतीय टीम की शुरुआत की. तब से 32 वर्षीय ने 21 टेस्ट, 121 वनडे और 87 T20I में 294 विकेट लेकर भारत का प्रतिनिधित्व किया है. पिछले एक दशक के दौरान भुवी ने भारतीय टीम के साथ कई बार अपने बेहतरीन गेंदबाजी के बदौलत भारत को जीत दिलाये है. भुवनेश्वर द्वारा पोस्ट किए गए हालिया वीडियो में हम उन पलों की झलकियां देख सकते है.
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जब भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के बराबर था और कई देशों की आधिकारिक मुद्रा थी
नई दिल्ली। मौजूदा समय में भारतीय मुद्रा रुपया एक डॉलर के मुकाबले बहुत कमजोर है, यहां तक कि एक यूएस डॉलर के लिए आपको 75 रुपए से अधिक का भुगतान करना पड़ता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि भारतीय रुपया हमेशा से ही इतना कमजोर था, एक समय था जब भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के बराबर था और इसके लिए आपको 75 रुपए नहीं देने पड़ते थे। एक समय था जब इटली में दुकानदार पाउंड स्टर्लिंग की बजाय भारतीय रुपए की मांग करते थे। वर्ष 1952 की बात करें तो उस वक्त लोग पाउंड की बजाए रुपए लेना पसंद करते थे, अहम बात यह है कि उस वक्त यूएस डॉलर को कोई पूछता भी नहीं था। यह वक्त ऐसा था जब स्विट्जरलैंड में स्विस बैंक में रुपए को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी विदेशी मुद्राओं में भारतीय कंपनियों की सीधी सूची जाती थी और एक रुपया, एक स्विस फ्रैंक के बराबर था।
अंग्रेजों के एक फैसले ने रुपए को बर्बाद कर दिया
देश को आजादी मिलने के बाद रुपया अमेरिकी डॉलर के बराबर था, उस वक्त एक रुपया एक डॉलर के बराबर था। लेकिन ब्रिटिश सरकार के एक फैसले ने देश के रुपए को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। दरअसल ब्रिटिश सरकार ने रुपए को स्टर्लिंग से जोड़ दिया। 24 सितंबर 1931 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय रुपए को गोल्ड से अलग करके इसे स्टर्लिंग से जोड़ दिया। ब्रिटिश सरकार के इस कदम ने रुपए को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया क्योंकि स्टर्लिग की हालत काफी खस्ता थी और उसे रुपए से जोड़ दिया।
1300 मिलिलयन स्टर्लिंग पाउंड का कर्ज विरासत में मिला
देश जब आजाद हुआ था तो उस वक्त भारत को 1300 मिलियन पाउंड स्टर्लिंग का कर्ज विरासत के रुप में मिला। आजादी के वक्त भी भारतीय मुद्रा काफी मजबूत थी और उसे दूसरे देश से कर्ज लेने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ा। लेकिन आजाद भारत उस वक्त पूर्व की ब्रिटिश सरकार द्वारा लिए गए कर्ज का जरूर देनदार था, भारत सरकार, ब्रिटिश सरकार की विरासत से बंधी हुई थी। हालांकि उस वक्त भारत सरकार ने ब्रिटिश सरकार से इस विदेशी मुद्राओं में भारतीय कंपनियों की सीधी सूची बात की गुजारिश की थी कि वह स्टर्लिंग को कीमत को खत्म ना करे। ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि अगर भारत ने उस वक्त स्टर्लिंग के कर्ज को अमेरिकी डॉलर से बदल दिया होता तो क्या आज भारतीय रुपए विदेशी मुद्राओं में भारतीय कंपनियों की सीधी सूची की यह हालत होती। लेकिन ऐसा नहीं करने की वजह से हमे इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ा।
ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने कमजोर किया रुपए को
भारत को उस वक्त एक बड़ा झटका लगा जब ब्रिटिश सरकार ने पाउंड स्टर्लिंग का अवमूल्यन कर दिया। भारत लगातार इस बात की कोशिश कर रहा था कि ब्रिटिश सरकार ऐसा नहीं करे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका और ब्रिटिश सरकार के फैसले के बाद एक स्टर्लिंग पाउंड की कीमत 2.8 यूएस डॉलर के बराबर हो गई और भारतीय रुपए के मुकाबले 4.03 रुपए। यानि एक डॉलर 4.65 रुपए के बराबर हो गया। इसका सीधा असर हमारे खजाने पर पड़ा क्योंकि अधिकतर खरीददारी यूएस डॉलर में हुई, उस वक्त मुश्किल से ही कोई देश स्टर्लिंग पाउंड को स्वीकार करता था। लेकिन बावजूद इसके रुपए ने अपनी ताकत को नहीं खोया।
कई देशों की आधिकारिक मुद्रा थी भारतीय रुपया
बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि भारतीय रुपया एक समय कतर, ओमान, कुवैत, बहरीन और यूएई में शामिल तमाम देशों की आधिकारिक मुद्रा थी। भारतीय रुपए का इस्तेमाल भारत और इन तमाम देशों में होता था। लेकिन जब गोल्ड की तस्करी दुबई से भारत में होने लगी तो विदेशी मुद्राओं में भारतीय कंपनियों की सीधी सूची इसका भुगतान रुपए में होता था। इसी के चलते रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 1959 में गल्फ देशों के लिए एक अलग रुपए की शुरुआत की ताकि तस्करों से निपटा जा सके। उस वक्त गल्फ रुपया भारतीय रुपए के बराबर था, लेकिन 1970 में भारतीय रुपया मिडल ईस्ट में कमजोर होने लगा, जिसके बाद भारत को कच्चा तेल यूएस डॉलर से खरीदने के लिए करना पड़ा। भारतीय रूपए का गिरना उस वक्त शुरू हुआ जब भारत ने कर्ज लेना शुरू किया।
उदारवाद ने बदली स्थिति
1990 तक भारत को गंभीर कर्ज और लोन की समस्या से गुजरना पड़ रहा था, जिसकी वजह से भारत को गोल्ड को गिरवी रखकर कर्ज लेने पर मजबूर होना पड़ा। 1991 में भारत विश्व बैंक के दबाव से उभरा। देश उस वक्त किसी भी तरह का कर्ज लेने के लिए अर्ह नहीं था। विश्व बैंक की इच्छा के चलते भारतीय रूपए का और अवमूल्यन किया गया, जिसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारवाद की शुरुआत हुई। उस वक्त हमे सीधे बाजार जाना चाहिए था। भारत उस वक्त खुले बाजार में 40 रुपए पर था, जबकि डॉलर के मुकाबले 21.00 था।
सरकार के पास है एक मौका
रुपए की हालत बिगड़ने में एक बड़ा योगदान आजादी के बाद लगातार महंगाी की रही। 1961, 1965, 1871 की जंग ने रुपए को और कमजोर किया। विशेषज्ञों का मानना है कि 1960 से 2020 तक भारत में औसत महंगाई दर 7.44 फीसदी रही जोकि भारत की खरीदने की क्षमता को दर्शाने के लिए काफी है। बहरहाल जब रुपया अपने चरम पर था, उसे एक बार फिर से वापस मजबूत करने के लिए सरकार को मजबूत कदम उठाने की जरूरत है। कोरोना संकट में तमाम कंपनियां चीन से बाहर जाना चाहती हैं, ऐसे में भारत इन कंपनियों के लिए नया ठिकाना बन सकता है।
विदेशी कंपनियों का ई-कॉमर्स में स्वागत
नई दिल्लीः सरकार ई-कॉमर्स सैक्टर में विदेशी कंपनियों के लिए आसान नियम बनाने जा रही है। इस नियम के मुताबिक, अगर कोई विदेशी कंपनी 100 प्रतिशत कच्चा माल भारत से खरीदती है, तो उसको ई-कॉमर्स सैक्टर में सीधे तौर पर अपने प्रॉडक्ट बेचने की अनुमति दी जाएगी। इससे विदेशी कंपनियों को अपने प्रॉडक्ट को बेचने में आसानी होगी। सूत्रों का कहना है कि भारत से कच्चा माल खरीदने से भारत के मार्कीट और विदेशी मुद्राओं में भारतीय कंपनियों की सीधी सूची देश की इकॉनमी को फायदा होगा और अप्रत्यक्ष रूप से मेक इन इंडिया अभियान को भी फायदा होगा।
मौजूदा समय में विदेशी कंपनियों को अपने प्रॉडक्ट के लिए भारतीय कंपनियों के फ्लैटफॉर्म का इस्तेमाल करना पड़ता है। वाणिज्य मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी के मुताबिक, बेशक मेक इन इंडिया में इस बात पर जोर दिया गया है कि विदेशी कंपनियां भारत में आएं और यहां पर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाएं। ई-कॉमर्स मार्कीट में हम विदेशी कंपनियों का प्रवेश इसलिए आसान बना रहे हैं, क्योंकि अगर विदेशी कंपनियों ने यहां से कच्चा माल खरीदना शुरू किया तो वे धीरे-धीरे अपने प्रॉडक्ट का उत्पादन भी शुरू कर देंगे।
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विदेशी मुद्रा भंडार में 12 अरब डॉलर की कमी आई: रिजर्व बैंक आंकड़े
पिछले छह महीनों में देश के विदेशी मुद्रा भंडार में आई पहली गिरावट है. इससे पहले 20 सितंबर, 2019 को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई थी. The post विदेशी मुद्रा भंडार में 12 अरब डॉलर की कमी आई: रिजर्व बैंक आंकड़े appeared first on The Wire - Hindi.
पिछले छह महीनों में देश के विदेशी मुद्रा भंडार में आई पहली गिरावट है. इससे पहले 20 सितंबर, 2019 को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई थी.
मुंबई: रुपये की गिरावट को रोकने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा निरंतर डॉलर की आपूर्ति होने से 20 मार्च को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 11.98 अरब डॉलर की भारी गिरावट के साथ 469.909 अरब डॉलर रह गया.
तेजी से फैलते कोरोना वायरस को लेकर अनिश्चितताओं के बीच विदेशी निवेशकों ने घरेलू इक्विटी और ऋण बाजार से धन निकासी जारी रखा जिससे 23 मार्च को रुपया 76.15 रुपये विदेशी मुद्राओं में भारतीय कंपनियों की सीधी सूची प्रति डॉलर के सर्वकालिक निम्न स्तर को छू गया था.
गत सप्ताह, देश का विदेशीमुद्रा भंडार 5.346 अरब डॉलर घटकर 481.89 अरब डॉलर रह गया था. यह पिछले छह महीनों में देश के विदेशी मुद्रा भंडार में आई पहली गिरावट है.
इससे पहले 20 सितंबर 2019 को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई थी. तब यह 38.8 करोड़ डॉलर घटकर 428.58 अरब डॉलर रह गया था.
छह मार्च को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 5.69 अरब डॉलर बढ़कर 487.23 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर को छू गया था.
समीक्षाधीन सप्ताह, यानी 20 मार्च को समाप्त सप्ताह विदेशी मुद्राओं में भारतीय कंपनियों की सीधी सूची में आई गिरावट का कारण विदेशी मुद्रा आस्तियों (एफसीए) में गिरावट दर्ज होना था, जो कुल मुद्राभंडार का महत्वपूर्ण भाग है.
समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियां 10.256 अरब डॉलर घटकर 437.102 अरब डॉलर रह गईं. इस दौरान पिछले कुछ सप्ताह से तेजी दर्शाने वाला स्वर्ण आरक्षित भंडार समीक्षाधीन सप्ताह में 1.610 अरब डॉलर घटकर 27.856 अरब डॉलर रह गया.
आलोच्य सप्ताह के दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में विशेष आहरण अधिकार चार करोड़ डॉलर घटकर 1.409 अरब डॉलर रह गया, जबकि आईएमएफ में देश की आरक्षित निधि भी 7.7 करोड़ डॉलर घटकर 3.542 अरब डॉलर रह गई.
बता दें कि, कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण की वजह से देश में लागू लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों के लिए रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को रेपो दर में 75 बेसिक पॉइंट यानी कि 0.75 फीसदी की कटौती करते हुए इसे 4.4 फीसदी कर दिया. इससे पहले रेपो दर 5.15 फीसदी पर थी.
इसके अलावा रिवर्स रेपो दर में 90 बेसिक पॉइंट यानी कि 0.90 फीसदी की कटौती करते हुए इसे घटाकर चार फीसदी कर दिया गया है. पहले ये 4.90 फीसदी पर थी.
वहीं, सभी वाणिज्यिक बैंकों और ऋण देने वाले संस्थानों को सभी प्रकार के कर्ज की किस्तों की वसूली पर तीन महीने तक रोक की छूट दी गई है. इससे होम लोन समेत अन्य कर्जों की ईएमआई में कमी आने की उम्मीद है.
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