विनिमय दर पूर्वानुमान - Exchange rate classification
विनिमय दर पूर्वानुमान - Exchange rate classification
1. बैंक विदेशी मुद्रा व्यापार के परिप्रेक्ष्य से
(1) खरीददारी दर / Buying rate : खरीद मूल्य के रूप में भी जाना जाता है, यह विदेशी मुद्रा बैंक द्वारा ग्राहक से विदेशी मुद्रा खरीदने के लिए उपयोग की जाने वाली कीमत है। आम तौर पर, विनिमय दर जहां विदेशी मुद्रा को घरेलू मुद्राओं की एक छोटी संख्या में परिवर्तित किया जाता है वह खरीद दर है, जो यह इंगित करता है कि देश की मुद्रा को कितनी मात्रा में विदेशी मुद्रा खरीदने की आवश्यकता है।
(2) बेचनादारी दर/ Selling rate: विदेशी मुद्रा बिक्री मूल्य के रूप में भी जाना जाता है, यह बैंकों द्वारा विदेशी मुद्रा बेचने के लिए बैंक द्वारा उपयोग की जाने वाली विनिमय दर को संदर्भित करता है। यह इंगित करता है कि यदि बैंक एक निश्चित मात्रा में विदेशी मुद्रा बेचता है तो देश की मुद्रा को कितना वसूल किया जाना चाहिए।
(3) मध्य दर / Middle rate: यह बोली मूल्य और पूछने की कीमत का औसत है। आमतौर पर समाचार पत्रों, पत्रिकाओं या आर्थिक विश्लेषण में उपयोग किया जाता है।
2. विदेशी मुद्रा लेनदेन के बाद प्रसव की लंबाई के अनुसार
(1) स्पॉट विनिमय दर / Spot exchange rate: यह स्पॉट विदेशी मुद्रा लेनदेन की विनिमय दर को संदर्भित करता है। यह विदेशी मुद्रा लेनदेन पूरा होने के बाद, दो कार्य दिवसों के भीतर डिलिवरी में विनिमय दर है। आम तौर पर विदेशी मुद्रा बाजार पर सूचीबद्ध विनिमय दर को स्पॉट विनिमय दर के रूप में जाना जाता है जब तक कि यह विशेष रूप से अग्रेषित विनिमय दर को इंगित नहीं करता है।
(2) अग्रेषित विनिमय दर Forward exchange rate यह भविष्य में एक निश्चित अवधि में वितरित की जाएगी, लेकिन पहले से ही, खरीदार और विक्रेता एक समझौते तक पहुंचने के लिए अनुबंध में प्रवेश करेंगे। जब वितरण तिथि तक पहुंच जाती है, तो समझौते के लिए दोनों पक्ष विनिमय दर और आरक्षण की राशि पर लेनदेन प्रदान करेंगे। अग्रेषण विदेशी मुद्रा व्यापार एक नियुक्ति-आधारित लेनदेन है, जो विदेशी मुद्रा खरीदार को विदेशी मुद्रा निधि और विदेशी मुद्रा जोखिम की शुरूआत के लिए अलग- अलग समय के कारण होता है। अग्रेषण विनिमय दर, स्पॉट एक्सचेंज रेट पर आधारित है, जिसे स्पॉट विनिमय दर के "प्रीमियम", "छूट" और "समानता" द्वारा दर्शाया जाता है।
3. विनिमय दर निर्धारित करने की विधि के अनुसार
(1) मूल दर/ Basic rate: आमतौर पर एक प्रमुख परिवर्तनीय मुद्रा का चयन करें जो अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेनदेन में सबसे अधिक उपयोग किया जाता है और विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा अनुपात है। इसे देश की मुद्रा के साथ तुलना करें और विनिमय दर निर्धारित करें। यह विनिमय दर मूल विनिमय दर है। मुख्य मुद्रा आम तौर पर एक विश्व मुद्रा को संदर्भित करती है, जिसका व्यापक रूप से मूल्य निर्धारण, निपटान, आरक्षित मुद्रा, स्वतंत्र रूप से परिवर्तनीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मुद्रा के लिए उपयोग किया जाता है।
(2) क्रॉस दर/ Cross rate : मूल विनिमय दर के बाद, अन्य विदेशी मुद्राओं के खिलाफ स्थानीय मुद्रा की विनिमय दर की गणना मूल विनिमय दर के माध्यम से की जा सकती है। परिणामी विनिमय दर क्रॉस एक्सचेंज दर है।
1. विदेशी मुद्रा लेनदेन में भुगतान विधि के अनुसार:
• टेलीग्राफिक विनिमय दर / Telegraphic exchange rate, डाक स्थानांतरण दर / Mail transfer rate,
• मांगपत्र दर / Demand draft rate
2. विदेशी मुद्रा नियंत्रण स्तर के अनुसार
(1) आधिकारिक दर विदेशी मुद्रा व्यापार युक्ति / Official rate: आधिकारिक विनिमय दर एक देश के विदेशी मुद्रा प्रशासन द्वारा घोषित विनिमय दर है, आमतौर पर सख्त विदेशी मुद्रा नियंत्रण वाले देशों द्वारा उपयोग की जाती है। (2) बाजार दर / Market rate : बाजार विनिमय दर मुक्त बाजार में विदेशी मुद्रा व्यापार के लिए वास्तविक विनिमय दर को संदर्भित करती है। यह विदेशी मुद्रा आपूर्ति और मांग की स्थितियों में बदलाव के साथ उतार-चढ़ाव करता है।
3. अंतरराष्ट्रीय विनिमय दर शासन के अनुसार
(1) निश्चित विनिमय दर/ Fixed exchange rate : इसका मतलब है कि किसी देश की मुद्रा और किसी अन्य देश की मुद्रा के बीच विनिमय दर मूल रूप से तय की जाती है, और विनिमय दर में उतार- चढ़ाव बहुत छोटा होता है।
(2) चलायमान एक्सचेंज रेट / Floating exchange rate: इसका मतलब है कि किसी देश के मौद्रिक प्राधिकरण अन्य मुद्राओं के मुकाबले देश की मुद्रा की आधिकारिक विनिमय दर निर्धारित नहीं करते हैं, न ही इसमें विनिमय दर में उतार-चढ़ाव की कोई ऊपरी या निचली सीमा है। स्थानीय मुद्रा विदेशी मुद्रा बाजार की आपूर्ति और मांग संबंधद्वारा निर्धारित की जाती है, और यह बढ़ने और गिरने के लिए स्वतंत्र है।
4. मुद्रास्फीति सहित
(1) नाममात्र विनिमय दर / Nominal exchange rate : एक विनिमय दर जिसे आधिकारिक तौर पर घोषित या विपणन किया जाता है जो मुद्रास्फीति पर विचार नहीं करता है।
(2) वास्तविक विनिमय दर / Real exchange rate : मुद्रास्फीति को खत्म करने वाली मामूली विनिमय दर
फ़ॉरेक्स क्या है
यह अनुमान है कि विश्व फ़ॉरेक्स बाजारों में औसतन 3.6 ट्रिलियन डॉलर का ट्रेड हर दिन होता है। फ़ॉरेक्स ट्रेडिंग का अधिकांश हिस्सा किसी एक केंद्रीकृत या संगठित विनिमय पर नहीं बल्कि इंटरबैंक मुद्रा बाजार में ब्रोकरों के माध्यम से होता है। इंटरबैंक मुद्रा बाजार चौबीस घंटे का बाजार है जो दुनिया भर में सूर्य का अनुसरण करता है। ऑस्ट्रेलिया में खुलने और यू.एस. में बंद होने के बावजूद, विनिमय जोखिम युक्त संगठनों के लिए बाजार मौजूद है, सट्टेबाज भी विनिमय दरों में बदलाव के संबंध में उनकी अपेक्षाओं से लाभ के प्रयास में फ़ॉरेक्स बाजारों में भाग लेते हैं।
फ़ॉरेक्स का ट्रेड कौन करता है
प्रारंभिक भाग में, फ़ॉरेक्स बाजार का उपयोग संस्थागत निवेशकों द्वारा किया जाता था जो वाणिज्यिक और निवेश उद्देश्यों के लिए बड़ी मात्रा में लेनदेन करते थे। आज हालांकि, आयातकों और निर्यातकों, अंतरराष्ट्रीय पोर्टफोलियो प्रबंधकों, बहुराष्ट्रीय निगमों, सट्टेबाजों, दैनिक ट्रेडर, लंबी अवधि के धारकों और हेज फंड सभी फ़ॉरेक्स बाजार का उपयोग करते हैं ताकि वे माल और सेवाओं के भुगतान कर सकें, वित्तीय आस्तियों में लेन-देन कर सकें और सट्टेबाजी के माध्यम से अपने जोखिम की हेजिंग या अपने जोखिम को बढ़ाकर मुद्रा की गति के जोखिम को कम करना या सट्टेबाजी कर सकें।
आज के सूचना सुपरहाइवे में फ़ॉरेक्स बाजार अब केवल संस्थागत निवेशक के लिए नहीं है। गत 10 वर्षों में गैर-संस्थागत ट्रेडरों में फ़ॉरेक्स बाजार तक पहुंचने और इससे मिलने वाले लाभों में वृद्धि देखी गई है। मेटाकोट्स मेटाट्रेडर जैसे ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म को विशेष रूप से निजी निवेशक के लिए विकसित किया गया है और शैक्षिक सामग्री अधिक आसानी से उपलब्ध हो गई है। इन सभी ने निजी निवेशक के लिए फ़ॉरेक्स बाजार के आकर्षण को बढ़ाया है।
पिछले दशक में फ़ॉरेक्स बाजार में वृद्धि से निजी निवेशक को कई फायदे हुए हैं। ट्रेडर को शिक्षित करने के लिए ट्रेडिंग सामग्री कहीं अधिक आसानी से उपलब्ध हो गई है। फोरम के माध्यम से सहायता सेवाएं तेजी से लोकप्रिय हो गई हैं और इस मामले में कि आप निजी निवेशक अब स्वयं खाते में ट्रेड नहीं करना चाहते हैं, आपके पास पेशेवर धन प्रबंधक हैं जो प्रबंधित खातों के माध्यम से कार्यभार संभाल लेंगे। संक्षेप में निजी निवेशक और लघु अवधि के ट्रेडर के लिए मुख्य लाभ हैं:
विदेशी मुद्रा का प्रबंधन जरूरी
भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है.
बीते आठ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने शेयर और बॉन्ड की बिकवाली कर लगभग 40 अरब डॉलर भारत से निकाल लिया है. इसी अवधि में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 52 अरब डॉलर की कमी हुई है. अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट जारी है. निर्यात की अपेक्षा आयात में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसका मतलब है कि हमें भुगतान के लिए निर्यात से प्राप्त डॉलर से कहीं अधिक डॉलर की जरूरत है.
सामान्य परिस्थितियों में भी भारत के पास डॉलर की संभालने लायक कमी रहती आयी है, जो अमूमन सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का एक से दो प्रतिशत होती है. आम तौर पर यह 50 अरब डॉलर से कम रहती है और आयात से अधिक निर्यात होने पर इसमें बढ़ोतरी होती है. इस कमी की भरपाई शेयर बाजार में विदेशी निवेश, विदेशी कर्ज, निजी साझेदारी या बॉन्ड खरीद से की जाती है.
इस तरह से आनेवाली पूंजी हमेशा ही चालू खाता घाटे से अधिक रही है, जिससे भारत का ‘भुगतान संतुलन’ खाता अधिशेष में रहता है. विदेशी कर्ज और उधार से ही ऐसा अधिशेष रखना जरूरी नहीं कि अच्छी बात ही हो, खासकर तब दुनियाभर में कर्ज का दबाव है. लेकिन सामान्य दिनों में विदेशियों का आराम से भारतीय अर्थव्यवस्था को कर्ज देना उनके भरोसे का संकेत है.
यह सब तेजी से बदलने को है और भारत के विदेशी मुद्रा कोष के संरक्षक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने चेतावनी का शुरुआती संकेत दे दिया है. अगर भाग्य ने साथ दिया और मान लिया जाये कि इस वित्त वर्ष में 80 अरब डॉलर की बड़ी रकम भी भारत में आये, तब भी भुगतान संतुलन खाते में 30-40 अरब डॉलर की कमी रहेगी. हमारा चालू खाता घाटा जीडीपी का 3.2 प्रतिशत तक होकर 100 अरब डॉलर के पार जा सकता है.
विदेशी मुद्रा के इस अतिरिक्त दबाव को झेलने के लिए हमारा भंडार पूरा नहीं होगा. इसीलिए रिजर्व बैंक ने अप्रवासी भारतीयों से डॉलर में जमा को आकर्षित करने के लिए कुछ छूट दी है. इसने विदेशी कर्ज लेना भी आसान बनाया है तथा भारत सरकार के बॉन्ड के विदेशी स्वामित्व की सीमा भी बढ़ा दी है. इन उपायों का उद्देश्य अधिक डॉलर आकर्षित करना है.
बढ़ते व्यापार और चालू खाता घाटा तथा इस साल चुकाये जाने वाले विदेशी कर्ज की मात्रा बढ़ने जैसे चिंताजनक संकेतों को देखते हुए ऐसे उपायों की जरूरत थी. भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है और खतरनाक रूप से अधिक है.
कर्ज लेने वाली निजी कंपनियों को या तो नया कर्ज लेना होगा या फिर भारत के मुद्रा भंडार से धन निकालना होगा. दूसरा विकल्प वांछित नहीं है क्योंकि मुद्रा भंडार घट रहा है और उसे बढ़ाने की जरूरत है. पहला विकल्प आसान नहीं होगा क्योंकि डॉलर विकासशील देशों में जाने के बजाय अमेरिका की ओर जा रहा है. किसी भी स्थिति में नये कर्ज पर अधिक ब्याज देना होगा, जिससे भविष्य में बोझ बढ़ेगा.
रिजर्व बैंक की पहलें केंद्र सरकार द्वारा डॉलर बचाने के उपायों के साथ की गयी हैं. सोना पर आयात शुल्क बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है. बहुत अधिक मांग के कारण भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक है. शुल्क बढ़ाने से मांग कुछ कम भले हो, पर इससे तस्करी भी बढ़ सकती है. गैर-जरूरी आयातों पर कुछ रोक लगने की संभावना है ताकि डॉलर का जाना रुक सके.
विदेशी मुद्रा और विनिमय दर का प्रबंधन रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है. अभी शेयर बाजार पर निवेशकों के निकलने के अलावा तेल की बढ़ी कीमतों के कारण विदेशी मुद्रा व्यापार युक्ति भी दबाव है. इससे भारत का कुल आयात खर्च (सालाना 150 अरब डॉलर से अधिक) प्रभावित होता है तथा अनुदान खर्च भी बढ़ता है क्योंकि तेल व खाद के दाम का पूरा भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाता है.
इस अतिरिक्त वित्तीय बोझ का सामना करने के लिए सरकार ने इस्पात और तेल शोधक कंपनियों के मुनाफे पर निर्यात कर लगाया है. इस कर से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व संग्रहण की अपेक्षा है. यह रुपये के मूल्य में गिरावट के असर से निपटने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है.
लेकिन निर्यात कर एक असाधारण और अपवादस्वरूप उपाय है तथा इसे तभी सही ठहराया जा सकता है, जब तेल की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हैं. भारत सरकार पर राज्यों को मुआवजा देने का वित्तीय भार भी है, जो वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में कमी के कारण देना होता है. राज्य सरकारों पर अपने कर्ज का भी बड़ा बोझ है और 10 राज्यों की स्थिति तो खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है, जो उनके दिवालिया होने का कारण भी बन सकता है.
बाहरी मोर्चे पर रुपये पर दबाव केवल तेल की कीमतें बढ़ने से आयात खर्च में वृद्धि के कारण नहीं है. तेल और सोने के अलावा अन्य कई उत्पादों, जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल, कोयला आदि के आयात में अप्रैल से जून के बीच 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. जून में सोने का आयात पिछले साल जून से 170 प्रतिशत अधिक रहा था. यह देखना होगा कि अधिक आयात शुल्क से सोना आयात कम होता है या नहीं.
भारतीय संप्रभु गोल्ड बॉन्ड खरीद सकते हैं, जो सोने का डिमैट विकल्प है और कीमती विदेशी मुद्रा भी बाहर नहीं जाती. सरकार को आक्रामक होकर बॉन्ड बेचना चाहिए. आगामी महीनों में घरेलू और बाहरी मोर्चों पर दोहरे घाटे के प्रबंधन के लिए ठोस उपाय करने होंगे. उच्च वित्तीय घाटा उच्च ब्याज दरों का कारण बनता है और उच्च व्यापार घाटा रुपये को कमजोर करता है.
अगर दोनों घाटों को कम करने के लिए इन दो नीतिगत औजारों (ब्याज दर और विनिमय दर) पर ठीक से काम किया जाता है, तो हम संकट से बच सकते हैं. रुपये को कमजोर करना एक स्वाभाविक ढाल है, पर निर्यात बढ़ने तक अल्प अवधि में व्यापार घाटे को बढ़ा सकता है.
इसी तरह वित्तीय घाटा कम करने के लिए खर्च पर नियंत्रण और अधिक कर राजस्व संग्रहण जरूरी है. अधिक राजस्व के लिए आर्थिक वृद्धि और रोजगार में बढ़त की आवश्यकता है. दुनिया में मंदी की हवाओं के कारण अगर तेल के दाम गिरते हैं, तो यह भारत के लिए मिला-जुला वरदान होगा क्योंकि वैश्विक मंदी भारतीय निर्यात के लिए ठीक नहीं है, जो व्यापार घाटा कम करने के लिए जरूरी है.
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भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार पांचवें सप्ताह इजाफा, पर गोल्ड रिजर्व में 29.6 करोड़ डॉलर की गिरावट
LagatarDesk : भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार पांचवें सप्ताह इजाफा हुआ है. 9 दिसंबर को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.91 अरब डॉलर बढ़कर 564.07 अरब डॉलर पहुंच गया. पांच सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में 34.08 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई है. वहीं साल की शुरूआत में विदेशी मुद्रा भंडार 632.7 अरब डॉलर पर था. इस तरह एक साल में देश का भंडार 68.63 अरब डॉलर घटा है. वहीं फॉरेन करेंसी एसेट्स (एफसीए), इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी आईएमएफ (IMF) में मिला देश का एसडीआर यानी स्पेशल ड्राइंग राइट और आईएमएफ में रखा आरक्षित मुद्रा भंडार में भी इजाफा हुआ है. हालांकि बीते सप्ताह गोल्ड रिजर्व में गिरावट दर्ज की गयी. आरबीआई ने शुक्रवार को आंकड़ा जारी कर इस बात की जानकारी दी. (पढ़ें, आईजीएल ने फिर बढ़ाये सीएनजी के दाम, 10 माह में 23.55 रुपये प्रति किलो महंगी हुई गैस)
रिपोर्टिंग वीक में एफसीए 3.141 अरब डॉलर बढ़कर 500.125 अरब डॉलर पहुंचा
रिपोर्टिंग वीक में फॉरेन करेंसी एसेट्स (एफसीए) 3.141 अरब डॉलर बढ़कर 500.125 अरब डॉलर हो गयी. इससे पहले 2 दिसबंर को एफसीए 9.694 अरब डॉलर के उछाल के साथ 496.984 अरब डॉलर पर जा पहुंचा था. वहीं 25 नवंबर को खत्म हुए सप्ताह में एफसीए 3 अरब डॉलर बढ़कर 487.29 अरब डॉलर पर पहुंचा गया था. जबकि 18 नवंबर को खत्म हुए सप्ताह में एफसीए 1.76 बिलियन डॉलर उछलकर 484.288 बिलियन डॉलर हो गया था. बता दें कि विदेशी मुद्रा भंडार में फॉरेन करेंसी एसेट्स का अहम हिस्सा होता है. इसके बढ़ने और घटने से देश के भंडार पर सीधा असर पड़ता है. फॉरेन करेंसी एसेट्स में डॉलर के अलावा यूरो, पाउंड और येन जैसी मुद्राओं को भी शामिल किया जाता है.
समीक्षाधीन सप्ताह में गोल्ड रिजर्व में आयी गिरावट
आंकड़ों के अनुसार, समीक्षाधीन सप्ताह में गोल्ड रिजर्व में गिरावट दर्ज की गयी है. 9 दिसंबर को खत्म हुए सप्ताह में स्वर्ण भंडार 29.6 करोड़ डॉलर घटकर 40.729 अरब डॉलर रह गया. इससे पहले यह 1.086 अरब डॉलर बढ़कर 41.025 अरब डॉलर पर जा पहुंचा था. हालांकि इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी आईएमएफ (IMF) में मिला देश का एसडीआर यानी स्पेशल ड्राइंग राइट 6.1 करोड़ डॉलर बढ़कर 18.106 अरब डॉलर हो गया. जो पिछले सप्ताह 16.4 करोड़ डॉलर घटकर 18.04 अरब डॉलर पर आ गया था. जबकि आईएमएफ में रखा आरक्षित मुद्रा भंडार 20 लाख डॉलर बढ़कर 5.11 अरब डॉलर हो गया. बीते सप्ताह आरक्षित मुद्रा भंडार 7.5 करोड़ डॉलर घटकर 5.108 अरब डॉलर रह गया था.
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भारत के कोष में रिकॉर्ड 14.72 अरब डॉलर का आया था उछाल
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, इससे पहले 2 दिसंबर को समाप्त हुए सप्ताह में यह 11.02 अरब डॉलर बढ़कर 561.16 अरब डॉलर पर पहुंच गया था. इससे पहले 25 नवंबर को समाप्त हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.89 अरब डॉलर की उछाल के साथ 550.14 अरब डॉलर पर आ गया. 18 नवंबर को खत्म हुए सप्ताह में भारत का कोष 2.54 अरब डॉलर बढ़कर 547.25 अरब डॉलर पहुंच गया. 1 नवंबर को समाप्त हुए सप्ताह में भारत का भंडार 14.72 अरब डॉलर के जबरदस्त उछाल के साथ 544.715 अरब डॉलर पर जा पहुंचा था. जो अगस्त 2021 के बाद सबसे अधिक इजाफा था.
अक्टूबर-नवंबर में भारत का कोष 4 बार घटा और तीन बार बढ़ा
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 4 नवंबर को समाप्त हुए सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 1.09 अरब डॉलर घटकर 529.99 अरब डॉलर रह गया था. वहीं 28 अक्टूबर को खत्म हुए सप्ताह में यह 6.56 अरब डॉलर बढ़कर 561.08 अरब डॉलर पर पंहुच गया था. जबकि इससे पहले देश का कोष लगातार घट रहा था. 21 अक्टूबर को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 3.85 अरब डॉलर घटकर 524.52 अरब डॉलर पर आ गया था. 14 अक्टूबर को खत्म हुए हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 4.50 अरब डॉलर घटकर 528.37 अरब डॉलर पर आ गया था. 7 अक्टूबर को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 20.4 करोड़ डॉलर बढ़कर 532.868 अरब डॉलर पर पंहुच गया था. वहीं 30 सितंबर को खत्म हुए सप्ताह में यह 4.854 अरब डॉलर घटकर 532.66 अरब डॉलर पर पहुंच गया. जबकि 3 सितंबर 2021 को विदेशी मुद्रा भंडार 642.45 बिलियन डॉलर के ऑल टाइम हाई पर पहुंच गया था.
ग्लोबल संकट से निपटने के लिए भारत के पास पर्याप्त भंडार-निर्मला सीतारमण
बता दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि भारत के पास दुनिया में सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार है. ये किसी भी ग्लोबल संकट से निपटने के लिए पर्याप्त है. हाल के दिनों में आरबीआई ने डॉलर की जबरदस्त खरीदारी की है. वहीं अक्टूबर 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर रहा था. लेकिन रुपये को गिरने से बचाने के लिए आरबीआई डॉलर बेचती रही है. जिसकी वजह से विदेशी मुद्रा में गिरावट देखने को मिली थी. 8 दिसंबर की मॉनिटरी पॉलिसी के ऐलान के दौरान आरबीआई गर्वनर शक्तिकांत दास विदेशी मुद्रा व्यापार युक्ति विदेशी मुद्रा व्यापार युक्ति ने भी कहा कि डॉलर की मजबूती के बाद भी बाकी देशों की करेंसी के मुकाबले रुपये में कम गिरावट आया है. विदेशी मुद्रा भंडार संतोषजनक बना हुआ है. वहीं शुक्रवार को करेंसी बाजार बंद होने पर रुपया 10 पैसे की कमजोरी के साथ 82.86 रुपये पर बंद हुआ.
विनिमय दर पूर्वानुमान - Exchange rate classification
विनिमय दर पूर्वानुमान - Exchange rate classification
1. बैंक विदेशी मुद्रा व्यापार के परिप्रेक्ष्य से
(1) खरीददारी दर / Buying rate : खरीद मूल्य के रूप में भी जाना जाता है, यह विदेशी मुद्रा बैंक द्वारा ग्राहक से विदेशी मुद्रा खरीदने के लिए उपयोग की जाने वाली कीमत है। आम तौर पर, विनिमय दर जहां विदेशी मुद्रा को घरेलू मुद्राओं की एक छोटी संख्या में परिवर्तित किया जाता है वह खरीद दर है, जो यह इंगित करता है कि देश की मुद्रा को कितनी मात्रा में विदेशी मुद्रा खरीदने की आवश्यकता है।
(2) बेचनादारी दर/ Selling rate: विदेशी मुद्रा बिक्री मूल्य के रूप में भी विदेशी मुद्रा व्यापार युक्ति जाना जाता है, यह बैंकों द्वारा विदेशी मुद्रा बेचने के लिए बैंक द्वारा उपयोग की जाने वाली विनिमय दर को संदर्भित करता है। यह इंगित करता है कि यदि बैंक एक निश्चित मात्रा में विदेशी मुद्रा बेचता है तो देश की मुद्रा को कितना वसूल किया जाना चाहिए।
(3) मध्य दर / Middle rate: यह बोली मूल्य और पूछने की कीमत का औसत है। आमतौर पर समाचार पत्रों, पत्रिकाओं या आर्थिक विश्लेषण में उपयोग किया जाता है।
2. विदेशी मुद्रा लेनदेन के बाद प्रसव की लंबाई के अनुसार
(1) स्पॉट विनिमय दर / Spot exchange rate: यह स्पॉट विदेशी मुद्रा लेनदेन की विनिमय दर को संदर्भित करता है। यह विदेशी मुद्रा लेनदेन पूरा होने के बाद, दो कार्य दिवसों के भीतर डिलिवरी में विनिमय दर है। आम तौर पर विदेशी मुद्रा बाजार पर सूचीबद्ध विनिमय दर को स्पॉट विनिमय दर के रूप में जाना जाता है जब तक कि यह विशेष रूप से अग्रेषित विनिमय दर को इंगित नहीं करता है।
(2) अग्रेषित विनिमय दर Forward exchange rate यह भविष्य में एक निश्चित अवधि में वितरित की जाएगी, लेकिन पहले से ही, खरीदार और विक्रेता एक समझौते तक पहुंचने के लिए अनुबंध में प्रवेश करेंगे। जब वितरण तिथि तक पहुंच जाती है, तो समझौते के लिए दोनों पक्ष विनिमय दर और आरक्षण की राशि पर लेनदेन प्रदान करेंगे। अग्रेषण विदेशी मुद्रा व्यापार एक नियुक्ति-आधारित लेनदेन है, जो विदेशी मुद्रा खरीदार को विदेशी मुद्रा निधि और विदेशी मुद्रा जोखिम की शुरूआत के लिए अलग- अलग समय के कारण होता है। अग्रेषण विनिमय दर, स्पॉट एक्सचेंज रेट पर आधारित है, जिसे स्पॉट विनिमय दर के "प्रीमियम", "छूट" और "समानता" द्वारा दर्शाया जाता है।
3. विनिमय दर निर्धारित करने की विधि के अनुसार
(1) मूल दर/ Basic rate: आमतौर पर एक प्रमुख परिवर्तनीय मुद्रा का चयन करें जो अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेनदेन में सबसे अधिक उपयोग किया जाता है और विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा अनुपात है। इसे देश की मुद्रा के साथ तुलना करें और विनिमय दर निर्धारित करें। यह विनिमय दर मूल विनिमय दर है। मुख्य मुद्रा आम तौर पर एक विश्व मुद्रा को संदर्भित करती है, जिसका व्यापक रूप से मूल्य निर्धारण, निपटान, आरक्षित मुद्रा, स्वतंत्र रूप से परिवर्तनीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मुद्रा के लिए उपयोग किया जाता है।
(2) क्रॉस दर/ Cross rate : मूल विनिमय दर के बाद, अन्य विदेशी मुद्राओं के खिलाफ स्थानीय मुद्रा की विनिमय दर की गणना मूल विनिमय दर के माध्यम से की जा सकती है। परिणामी विनिमय दर क्रॉस एक्सचेंज दर है।
1. विदेशी मुद्रा लेनदेन में भुगतान विधि के अनुसार:
• टेलीग्राफिक विनिमय दर / Telegraphic exchange rate, डाक स्थानांतरण दर / Mail transfer rate,
• मांगपत्र दर / Demand draft rate
2. विदेशी मुद्रा नियंत्रण स्तर के अनुसार
(1) आधिकारिक दर / Official rate: आधिकारिक विनिमय दर एक देश के विदेशी मुद्रा प्रशासन द्वारा घोषित विनिमय दर है, आमतौर पर सख्त विदेशी मुद्रा नियंत्रण वाले देशों द्वारा उपयोग की जाती है। (2) बाजार दर / Market rate : बाजार विनिमय दर मुक्त बाजार में विदेशी मुद्रा व्यापार के लिए वास्तविक विनिमय दर को संदर्भित करती है। यह विदेशी मुद्रा आपूर्ति और मांग की स्थितियों में बदलाव के साथ उतार-चढ़ाव करता है।
3. अंतरराष्ट्रीय विनिमय दर शासन के अनुसार
(1) निश्चित विनिमय दर/ Fixed exchange rate : इसका मतलब है कि किसी देश की मुद्रा और किसी अन्य देश की मुद्रा के बीच विनिमय दर मूल रूप से तय की जाती है, और विनिमय दर में उतार- चढ़ाव बहुत छोटा होता है।
(2) चलायमान एक्सचेंज रेट / Floating exchange rate: इसका मतलब है कि किसी देश के मौद्रिक प्राधिकरण अन्य मुद्राओं के मुकाबले देश की मुद्रा की आधिकारिक विनिमय दर निर्धारित नहीं करते हैं, न ही इसमें विनिमय दर में उतार-चढ़ाव की कोई ऊपरी या निचली सीमा है। स्थानीय मुद्रा विदेशी मुद्रा बाजार की आपूर्ति और मांग संबंधद्वारा निर्धारित की जाती है, और यह बढ़ने और गिरने के लिए स्वतंत्र है।
4. मुद्रास्फीति सहित
(1) नाममात्र विनिमय विदेशी मुद्रा व्यापार युक्ति दर / Nominal exchange rate : एक विनिमय दर जिसे आधिकारिक तौर पर घोषित या विपणन किया जाता है जो मुद्रास्फीति पर विचार नहीं करता है।
(2) वास्तविक विनिमय दर / Real exchange rate : मुद्रास्फीति को खत्म करने वाली मामूली विनिमय दर
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