'हम कारगिल के बाद शादी करने वाले थे'
डिंपल कहती हैं, '1996 में विक्रम का सेलेक्शन हो गया। उसने चंडीगढ़ में कॉलेज छोड़ दिया। लेकिन एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरा जब मैंने उसे याद नहीं किया। वह मिलिट्री एकेडमी में था और हमारा प्यार बढ़ता गया। 1999 में कारगिल से लौटने के हम शादी करने वाले थे। लेकिन वह लौटा नहीं। जीवनभर का दर्द और अपनी यादें मुझे दे गया।'
अवैध निर्माण: मेयर मौन हैं, कमिश्नर को शर्म नहीं आती… बस्ती नौ में 6 महीने से लगातार शिकायत, फिर भी बनकर खड़ी हो गई दो मंजिला कामर्शियल माल, मालामाल हुआ अफसर!
डेली संवाद, जालंधर
जालंधर में अवैध निर्माण को किस कदर बढ़ावा दिया जा रहा है, इसका अगर प्रत्यक्ष नमूना देखना है, तो चले आइए वेस्ट हलके में पड़ते बस्ती नौ में। इंस्पैक्टरों, एटीपी, एमटीपी और एसटीपी की भारी-भरकम फौज सिर्फ AC वाले दफ्तरों में मौज कर रही है, शहर में एक के बाद एक कामर्शियल माल अवैध तरीके से बनते जा रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि जो पैसा नगर निगम के खजाने में जमा होना चाहिए, उसे कौन खा रहा है? इस सवाल पर मेयर जगदीश राजा मौन हैं, तो निगम कमिश्नर करुणेश शर्मा को कोई शर्म भी नहीं आती।
चार महीने पहले अखबार में छपी खबर
एसटीपी, एमटीपी, एटीपी और इंस्पैक्टरों की फौज ने शहर में अवैध निर्माण करने को लेकर उन दलालों को ठेका दे दिया है, जो कभी प्रापर्टी डीलिंग का कारोबार करते थे, या फिर उन आर्किटैक्ट के दफ्तरों में अवैध कमाई का नोट गिना जाता है, जो अफसरों के काफी करीब होते हैं। एक तरफ से नगर निगम का बिल्डिंग ब्रांच इस वक्त न तो मेयर चला रहे हैं और न ही कमिश्नर, बल्कि दलाल टाइप के आर्किटैक्ट और कुछ प्रापर्टी डीलर।
जोनल दफ्तर के चंद कदम दूर अवैध निर्माण
नगर निगम के जोनल दफ्तर के चंद कदम दूर बस्ती नौ से बबरीक चौक की तरफ जाती रोड पर निजातम नगर गली नम्बर 7 के बाहर नारायण नगर के एक मकान को तोड़ कर हाल बनाया गया फिर बाहर टू साइड ओपन प्लाट में दुकाने बनाई गई और दोनों को बड़ी सफाई के साथ आपस मे जोड़ कर मल्टी स्टोरी माल का रूप दिया जा रहा है जिसके 2 फ्लोर तैयार हो चुके है। हैरानी की बात तो यह है कि इस अवैध निर्माण की शिकायत के बाद अप्रैल में अखबारों में खबरें भी खूब छपी थी। तब इस निर्माण को रोकने का ड्रामा किया गया। अब यहां दो मंजिला कामर्शियल माल बनकर खड़ा हो गया है।
इलाके के लोगों की शिकायत पर डेली संवाद की टीम जब मौके पर पहुंची तो देखने को मिला कि जिस पॉइंट पर यह विशाल इमारत खड़ी की गई है वहां पहले से ही पार्किंग की समस्या है। इलाके के लोगों ने बताया कि पिछले चार महीने से लगातार शिकायतें की जा रही है, लेकिन इंस्पैक्टर से लेकर एटीपी, एमटीपी और एसटीपी व मेयर भी मौन हैं। इलाके के लोगों ने बताया कि एक कांग्रेसी युवा नेता की शह पर यह निर्माण हुआ है, जिसमें अफसरों ने लाखों रुपए रिश्वत के रूप में लिए हैं।
वहीं, इंस्पैक्टर दिनेश जोशी ने कहा कि ये इलाका किरदीप सिंह का है। लेकिन किरणदीप सिंह ने कहा कि ये इलाका दिनेश जोशी का है। वहीं, एटीपी विनोद कुमार ने कहा कि चेक करवाता हूं। एमटीपी मेहरबान सिंह ने फोन नहीं उठाया, जबकि एसटीपी परमपाल सिंह ने इलाके के एटीपी ही बता सकते हैं, कि अवैध निर्माण कैसे हुआ।
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गोमती, सरयू, यमुना, राप्ती नदियों की धारा पहले से अधिक अविरल और निर्मल हुई
उत्तर प्रदेश में गंगा समेत अन्य प्रमुख नदियों में प्रदूषण काफी कम हुआ है। नदियों की धारा अविरल और निर्मल हुई हैं। नदियों में गिरने वाले नाले-नालियों को टैप किया गया है। राज्य सरकार ने प्रदेश में 3298.84 एमलडीए के 104 एसटीपी चालू किये हैं। नमामि गंगे परियोजना के तहत संचालित परियोजनाओं ने दूषित हो चुकी नदियों को फिर से स्वच्छता प्रदान की है। तेजी से चलाए गये स्वच्छता अभियानो से गंगा ही नहीं प्रदेश की गोमती, सरयू, यमुना, राप्ती समेत सभी प्रमुख नदियों की हालत सुधरी है। गंदगी की मात्रा घटने से जलीय जीवों को जीवन मिला है और सिल्ट निकाले जाने से नदियों की सतही सफाई संभव हुई है।
नदियों की स्वच्छता और उसमें गिरने वाले सीवेज को रोकने के साथ ही शहरों में घरेलू सीवरेज कनेक्शन देने के प्रयास भी तेजी से किये जा रहे हैं। शहरों में सड़क पर बहने वाला सीवर का गंदा पानी अब नहीं दिखाई देता है। गंदगी और बदबू ने लोगों की परेशानी कम हुई है। साथ ही गंदगी से होने वाली बीमारी पर भी नियंत्रण संभव हो पाया है। वर्तमान में 3298.84 एमएलडी के 104 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के निर्माण ने इसमें काफी निर्णायक भूमिका निभाई है। नमामि गंगा के तहत गंगा नदी से सटे अनूपशहर को मिली सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट(एसटीपी) और सीवरेज लाइन की सौगात से नदी में दूषित पानी गिरना बंद हुआ। यहां 78 करोड़ की लागत से सीवरेज लाइन बिछाने का काम किया गया।
इसी तर्ज पर लखनऊ में भी गोमती नदी की स्वच्छता में अभूतपूर्व परिर्वतन आए। नदी की स्वच्छता के साथ सतह पर जमी सिल्ट निकालने के लिए ड्रेजिंग कराई गई। नदी में रहे जीएच कैनाल (हैदर कैनाल) के सीवर के पानी को शोधित करने के लिए 120 एमएलडी क्षमता का सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जा रहा है। यही नहीं राज्य के गाजियाबाद, मेरठ, आगरा, लोनी, सहारनपुर, बिजनौर, पिलखुआ, मुजफ्फरनगर, रामपुर, गोरखपुर, सुलतानपुर और आयोध्या नगरों से गुजरने वाली नदियों में गिरने वाले सीवेज को रोकने के लिए योजना के तहत एसटीपी का निर्माण कार्य पूरा करा लिया गया है। इसके साथ ही सीवरेज शोधन संयंत्रों के रख-रखाव और सुचारू रूप से संचालन के लिए भी व्यवस्था की गई हैं। सरकार की मंशा नदियों को गंदगी और सीवेज से पूरी तरह से मुक्ति दिलाना है।
कानुपर में सीसामऊ नाला पूरी तरह से किया गया बंद
यूपी सरकार ने नमामि गंगे योजना के तहत सीसामऊ नाला परियोजना के माध्यम से नाले को पूरी तरह से बंद करके एसटीपी में डालने का काम किया है। कानपुर में 128 साल पुराना सीसामऊ नाला गंगा नदी में गंदगी के गिरने का बड़ा कारण हुआ करता था। नमामि गंगे योजना के तहत इस नाले के 140 एमएलडी सीवेज को आई.एण्ड.डी द्वारा टैप कर 80 एमएलडी बिनगवां एसटीपी और 60 एमएलडी जाजमऊ एसटीपी से शोधित किया जा रहा है। इस प्रणाली के माध्यम से कानपुर में गंगा नदी में गिरने वाला प्रदूषण पूरी तरह से बंद हुआ। जिससे गंगा नदी के प्रवाह में गुणवत्ता में काफी सुधार आया है।
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गंगा की सफाई में खर्च हो रहे पैसे, लेकिन स्थिति जस की तस! हाई कोर्ट ने जताई नाराजगी.
Allahabad High Court News: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सवाल किया है कि यूपी के जिन शहरों से गुजर रही है, वहां के नालों को एसटीपी से जोड़ा गया है या नहीं? इसके अलावा, कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि अधिकारी जवाब देने के बजाय अपनी जिम्मेदारी शटलकॉक की तरह एक दूसरे के पाले में डाल रहे हैं.
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मोहम्मद गुफरान/प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गंगा प्रदूषण के मामले में सुनवाई करते हुए जल निगम, उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य विभागों की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि विभाग अपनी जवाबदेही को शटलकॉक की तरह शिफ्ट कर रहे हैं. जल निगम के पास पर्यावरण विशेषज्ञ नहीं, फिर वह पर्यावरण की निगरानी कैसे कर रहा है? सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चलाने की जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनी को सौंप दी गई है और खुद अक्षम अधिकारी के मार्फत निगरानी कर रहा है.
नमामि गंगे प्रोजेक्ट में कब कितना पैसा खर्च हुआ, रिपोर्ट तलब
कोर्ट ने इस मामले में तीखी नाराजगी जताई है. कोर्ट ने महानिदेशक नेशनल मिशन क्लीन गंगा से उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी और पूछा है कि नमामि गंगे परियोजना के तहत अब तक कितना पैसा खर्च किया है? वहीं, कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी जांच रिपोर्ट मांगी है. बोर्ड ने एसटीपी की जांच के लिए 28 टीमें गठित की हैं. यूपीपीसीबी से टेस्टिंग, शिकायत निस्तारण और अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है.
जानकारी पेश करने के लिए मांगा गया समय
इसके साथ ही, न्यायालय ने यह भी पूछा कि गंगा जिन शहरों से होकर गुजरी हैं, वहां पर बने नालों को एसटीपी से जोड़ा गया या नहीं? नालों की स्थिति, डिस्चार्ज, ट्रीटमेंट और जल की गुणवत्ता को लेकर जानकारी मांगी है. एएसजीआई ने कोर्ट से विस्तृत जानकारी पेश करने के लिए समय मांगा. याचिका की सुनवाई 26 सितंबर को होगी.
कोर्ट की नाराजगी, अपनी जिम्मेदारियों का सही जवाब नहीं दे रहे अधिकारी
बता दें, चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और अजीत कुमार की पूर्णपीठ ने गंगा प्रदूषण के मामले में दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से अधिवक्ता बाल मुकुंद सिंह, भारत सरकार जलशक्ति मंत्रालय की तरफ से एक एसजीआई शशि प्रकाश सिंह व राजेश त्रिपाठी, नगर निगम प्रयागराज के अधिवक्ता एसडी कौटिल्य ने पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने में आपसी तालमेल बनाकर काम न करने पर कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि मामले में विभाग अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का सही से जवाब देने के बजाय शटलकॉक की तरह एक-दूसरे के पाले में डाल रहे हैं.
15 जिलों में 74 नाले गंगा में गिरते हैं, स्थित जस की तस
कोर्ट ने कहा कि हकीकत में विभागों के कार्य आंखों में धूल झोंकने वाले हैं. कोर्ट ने उन शहरों के साइट प्लान को भी देखा जहां से गंगा गुजरी है. कोर्ट को न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कुमार गुप्ता ने बताया कि यूपी में गंगा 15 शहरों से गुजरती है. उसके लिए साइट प्लान की रिपोर्ट प्रमुख सचिव नमामि गंगे की ओर से दाखिल की गई है. इन शहरों में 74 नाले हैं, जो गंगा में गिर रहे हैं. इस पर कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता नीरज तिवारी से पूछा कि इन शहरों की एसटीपी से शहरों के नालों को जोड़ा गया है या नहीं? इस पर न्यायमित्र गुप्ता ने कहा कि प्रयागराज सहित अन्य जिलों में तकरीबन 58 से 60 फीसदी कनेक्ट कौन से दलाल एसटीपी हैं किए जा चुके हैं. तीन जिलों में बलिया, प्रतापगढ़ सहित तीन जिलों में एसटीपी नहीं बनी हैं. कानपुर की ट्रेनरियों को कहीं शिफ्ट नहीं किया गया. इतने पैसे खर्च करने के बावजूद गंगा की स्थिति जस की तस है.
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पुलिस की वर्दी पर लगे स्टार देखकर कैसे पहचानें कि वो किस रैंक का अधिकारी या पुलिसवाला है? ये रहा इसका जवाब
भारत में 28 राज्यों के पास अपनी-अपनी पुलिस फोर्स है और ऐसे में सैलरी का सिस्टम भी अलग-अलग है. भारत में कुल पुलिस कर्मियों की संख्या लाखों में है. हर राज्य की पुलिस फोर्स की तय यूनिफॉर्म को पहनने के लिए लोग जी-जान मेहनत करते हैं.
पुलिस में भर्ती होना हर किसी का सपना होता है. भारत का पुलिस सिस्टम दुनिया के कुछ बड़े पुलिस सिस्टम का हिस्सा है. कई राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के पास अपनी पुलिस फोर्स है जिसमें लाखों ऑफिसर और जवान शामिल हैं. सेनाओं की तरह ही पुलिस यूनिफॉर्म का भी अपना एक अलग महत्व है. आइए आपको बताते हैं कि आप यूनिफॉर्म पर लगे सितारों को देखकर कैसे पहचान सकते हैं कि कोई पुलिस कर्मी ऑफिसर है या जवान.
भारत के पास है एक बड़ी पुलिस फोर्स
भारत में 28 राज्यों के पास अपनी-अपनी पुलिस फोर्स है और ऐसे में सैलरी का सिस्टम भी अलग-अलग है. भारत में कुल पुलिस कर्मियों की संख्या लाखों में है. हर राज्य की पुलिस फोर्स की तय यूनिफॉर्म को पहनने के लिए लोग जी-जान मेहनत करते हैं. कड़ी मेहनत के बाद कोई इंडियन पुलिस सर्विस (IPS) में सेलेक्ट होकर ऑफिसर बनता है और कोई जवान.
कांस्टेबल
पुलिस विभाग में कॉन्स्टेबल एक शुरुआती पोस्ट है और हर कॉन्स्टेबल की यूनिफॉर्म पर कोई भी बैज या फिर स्टार नहीं होता है. बैज या स्टार न होने के बाद भी यह सबसे महत्वपूर्ण पोस्ट होती है और कॉन्स्टेबल को भी अपने सीनियर ऑफिसर की तरह ही ड्यूटी को पूरा करना होता है.
हेड कांस्टेबल
कांस्टेबल से एक रैंक होता है हेड कॉन्स्टेबल का होता है. इनकी यूनिफॉर्म पर काले रंग की पट्टी होती है जिस पर पीले रंग की दो पट्टी लगी होती है. हालांकि कई राज्यों की पुलिस की वर्दी हेड कॉन्स्टेबल की यूनिफॉर्म अलग होती है. कई जगह लाल रंग की चौड़ी पट्टी पर तीन काली पट्टी लगी होती हैं.
सीनियर पुलिस कॉन्स्टेबल कॉन्स्टेबल और हेड कॉन्स्टेबल से ऊपर का पद, सीनियर पुलिस कॉन्स्टेबल होता है. इनके बैज की जगह पर काले रंग की पट्टी होती है जिसके ऊपर से पीले रंग की भी पट्टी होती है लेकिन कुछ राज्यों में बैज पर लाल रंग की पट्टियां रहती है.
असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर
असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर यानी ASI, और ये रैंक, हेड कॉन्स्टेबल के बाद होती है. इनकी वर्दी पर एक लाल और नीली पट्टी के साथ एक स्टार भी लगा होता है.
सब इंस्पेक्टर
ASI के बाद सब इंस्पेक्टर की रैंक होती है और ये ऑफिसर रैंक मानी जाती है. पुलिस का सब-इंस्पेक्टर, आर्मी के सूबेदार के बराबर होता है. सब इंस्पेक्टर की यूनिफॉर्म पर लाल और नीली रंग की पट्टी लगी होती है और 2 स्टार लगे होते हैं.
इंस्पेक्टर
इंस्पेक्टर किसी भी थाने का इंचार्ज होता है और पूरा थाना, इंस्पेक्टर के अंडर होता है और उसका आदेश मानता है. इंस्पेक्टर किसी भी थाने की सर्वोच्च पोस्ट होती है. इनकी वर्दी पर एक लाल और नीली स्ट्रिप होती है जिस पर तीन स्टार लगे होते हैं.
डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस DSP
डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस या जिसे आप DSP के नाम से भी जानते हैं. डीएसपी किसी भी राज्य की पुलिस के प्रतिनिधि के तौर पर होता है. इनकी वर्दी पर एक लाल और खाकी रंग का बैज होता है जिस पर कोई भी कोई भी स्ट्रिप नहीं होती है बैज पर तीन स्टार लगे होते है.
असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस ASP
डीएसपी कौन से दलाल एसटीपी हैं से एक रैंक ऊपर होता है, असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट टेंट ऑफ पुलिस. इन्हें एडिशनल डिप्टी कमिश्नर भी बोलते हैं. एएसपी की वर्दी पर सिर्फ अशोक का स्तम्भ होता है. IPS की परीक्षा पास करने के बाद ये ऑफिसर की पहली रैंक होती है. इसी रैंक के तहत किसी IPS ऑफिसर की पुलिस ट्रेनिंग होती है. ये पद सेना के कैप्टन के बराबर होता है. इसके अलावा एडीशनल सुपरीटेंडेंट ऑफ पुलिस की यूनिफॉर्म भी कुछ ऐसी ही होती है.
सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस
सुपरिंडेंटेंट ऑफ पुलिस ASP से ऊपर की रैंक है. जो डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (डीसीपी) और एसपी के तौर पर भी जाने जाते हैं. नाम से भी जाने जाते हैं. इनकी वर्दी पर अशोक का स्तम्भ और और एक स्टार लगा होता है.
सीनियर सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस- SSP
एसपी से एक रैंक ऊपर होती है सीनियर सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस या SSP की पोस्ट. इन्हें वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के नाम से भी जाना जाता है. ये बड़े शहरों में तैनात होते है और इनके तहत पूरा जिला होता है. इनकी वर्दी पर एक अशोक का स्तम्भ और 2 स्टार लगे होते हैं.
डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस-DIG
एसएसपी से एक रैंक ऊपर होती है डीआईजी की पोस्ट. इन्हे पुलिस उपमहानिरक्षक भी कहते है. इनके बैज पर आईपीएस IPS लिखा होता है और अशोक के स्तम्भ के साथ तीन स्टार भी रहते हैं.
इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस- IG
डीआईजी से एक रैंक ऊपर होता है इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस यानी आईजीपी का पद. इन्हें पुलिस महानिरक्षक के नाम से भी जाना जाता है. इनकी वर्दी पर एक तलवार और स्टार रहता है. और बैज में आईपीएस लिखा होता है.
कौन है Dimple Cheema, जिनसे कारगिल जाने से पहले 'वादा' कर गए थे SherShaah कैप्टन विक्रम बत्रा
कैप्टन विक्रम बत्रा की बायॉपिक 'शेरशाह' का टीजर (Shershaah Teaser) रिलीज हो गया। फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा (Sidharth Malhotra) के साथ कियारा आडवाणी (Kiara Advani) हैं। कियारा फिल्म में कैप्टन बत्रा की गर्लफ्रेंड डिंपल चीमा के किरदार में नजर आएंगी। लेकिन क्या आप देश के आगे कुर्बान होने वाली इन प्रेमियों की लव स्टोरी जानते हैं।
Shershaah Captain Vikram Batra and Girlfriend Dimple Cheema’s love story, Kiara Advani to play the female lead in Film
फिर कॉलेज छोड़ मिलिट्री एकेडमी चले गए विक्रम
डिंपल चीमा ने 'क्विंट' को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने और विक्रम ने कुछ बेहद खूबसूरत महीने चंडीगढ़ में गुजारे। लेकिन साल 1996 विक्रम बत्रा का इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) में सेलेक्शन हो गया और वह देहरादून चले गए। जाहिर तौर पर डिंपल और विक्रम के बीच किलोमीटर्स में दूरियां बढ़ गईं, लेकिन प्यार कभी कम नहीं हुआ।
SherShaah कैप्टन विक्रम बत्रा, कारगिल का हीरो जिसने कहा था 'तिरंगे में लिपटा ही सही मैं आऊंगा जरूर'
'हम कारगिल के बाद शादी करने वाले थे'
डिंपल कहती हैं, '1996 में विक्रम का सेलेक्शन हो गया। उसने चंडीगढ़ में कॉलेज छोड़ दिया। लेकिन एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरा जब मैंने उसे याद नहीं किया। वह मिलिट्री एकेडमी में था और हमारा प्यार बढ़ता गया। 1999 में कारगिल से लौटने के हम शादी करने वाले थे। लेकिन वह लौटा नहीं। जीवनभर का दर्द और अपनी यादें मुझे दे गया।'
कम होती थी बात, लेकिन बढ़ रहा था प्यार
डिंपल बताती हैं कि ट्रेनिंग पूरी होने के बाद जब विक्रम की पोस्टिंग हुई और वह अलग-अलग मिशन में व्यस्त रहने लगे तो मुलाकातों और बातों का इंतजार बढ़ने लगा। विक्रम देश की सेवा में अपना समय देना चाहते थे और डिंपल ने भी इसमें उनका साथ दिया। डिंपल बताती हैं कि इस बीच उन पर परिवार की ओर से शादी का दबाव बढ़ने लगा था। लेकिन वह हमेशा विक्रम से कहती थीं, 'जो आपको पसंद है, वह काम करें। उस काम में अपना पूरा ध्यान लगाएं। आप जो कर रहे हैं और उसका जो परिणाम होगा, उसे पसंद करने के लिए सब मजबूर हो जाएंगे।'
Shershaah Teaser: कौन से दलाल एसटीपी हैं रोंगटे खड़े कर देगी कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी, 'शेरशाह' का टीजर रिलीज
'उसने अंगूठा काटा और मेरी मांग भर दी'
डिंपल आगे बताती हैं कि कपल्स के लिए मनसा देवी मंदिर और गुरुद्वारा श्री नंदा साहिब जाना एक रीत मानी जाती थी। ऐसी ही एक यात्रा के दौरान जब दोनों परिक्रमा कर रहे थे, तब विक्रम ने उनका दुपट्टा पकड़ा हुआ था। परिक्रमा पूरी होने के बाद विक्रम ने कहा, 'बधाई हो, श्रीमती बत्रा!' इसके बाद जब दोनों अगली बार मंदिर गए तब डिंपल ने शादी को लेकर चिंता जाहिर की। वह बताती हैं कि तब विक्रम बत्रा ने अपने बटुए से एक ब्लेड निकाला और अपना अंगूठा काटकर खून से उनकी 'मांग' भर दी।
'आज भी लगता है हम फिर मिलने वाले हैं'
डिंपल कहती है कि कैप्टन बत्रा के साथ उनका रिश्ता भले ही चार साल का रहा, लेकिन उनकी यादें जिंदगी काटने के लिए काफी हैं। वह कहती हैं, 'ऐसा लगता है कि जैसे दशक गुजर गए, मैंने कभी भी उसे खुद से अलग नहीं पाया। मुझे आज भी महसूस होता है कि विक्रम एक पोस्टिंग पर गया है और हमलोग फिर से मिलने वाले हैं। बस यह कुछ समय की बात है।'
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