श्री अशोक चावला एनएसई के निदेशक मंडल के अध्यक्ष हैं और श्री विक्रम लिमये एनएसई के प्रबंध निदेशक और सीईओ हैं।

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनएसई) भारत में अग्रणी स्टॉक एक्सचेंज है और दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ एक्सचेंज (डब्ल्यूएफई) की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से जून 2018 तक इक्विटी शेयरों में ट्रेडों की संख्या।

एनएसई ने 1994 में इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन-आधारित ट्रेडिंग, डेरिवेटिव ट्रेडिंग (इंडेक्स फ्यूचर्स के रूप में) और 2000 में इंटरनेट ट्रेडिंग शुरू की, जो भारत में अपनी तरह की पहली थीं।

एनएसई के पास एक पूरी तरह से एकीकृत व्यापार मॉडल है जिसमें हमारी एक्सचेंज लिस्टिंग, ट्रेडिंग सेवाएं, समाशोधन और निपटान सेवाएं, सूचकांक शामिल हैं।मंडी डेटा फीड, प्रौद्योगिकी समाधान और वित्तीय शिक्षा की पेशकश। एनएसई एक्सचेंज के नियमों और विनियमों के साथ व्यापार और समाशोधन सदस्यों और सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा अनुपालन की भी देखरेख करता है।

श्री अशोक चावला एनएसई के निदेशक मंडल के अध्यक्ष हैं और श्री विक्रम लिमये एनएसई के प्रबंध निदेशक और सीईओ हैं।

एनएसई प्रौद्योगिकी में अग्रणी है और प्रौद्योगिकी में नवाचार और निवेश की संस्कृति के माध्यम से अपने सिस्टम की विश्वसनीयता और प्रदर्शन सुनिश्चित करता है। एनएसई का मानना है कि इसके उत्पादों और सेवाओं का दायरा और विस्तार, भारत में कई परिसंपत्ति वर्गों में निरंतर नेतृत्व की स्थिति और वैश्विक स्तर पर इसे बाजार की मांगों और परिवर्तनों के लिए अत्यधिक प्रतिक्रियाशील होने में सक्षम बनाता है और उच्च-स्तर प्रदान करने के लिए व्यापारिक और गैर-व्यापारिक दोनों व्यवसायों में नवाचार प्रदान करता है। बाजार सहभागियों और ग्राहकों को गुणवत्तापूर्ण डेटा और सेवाएं।

NSE

1992 तक, BSE भारत में सबसे लोकप्रिय स्टॉक एक्सचेंज था। बीएसई फ्लोर-ट्रेडिंग एक्सचेंज के रूप में कार्य करता था। 1992 में NSE की स्थापना देश के पहले डिम्युचुअलाइज्ड स्टॉक एक्सचेंज के रूप में हुई थी। यह तकनीकी रूप से उन्नत, स्क्रीन-आधारित ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (बीएसई के फ्लोर-ट्रेडिंग के विपरीत) को पेश करने वाला भारत का पहला स्टॉक एक्सचेंज भी था। यह स्क्रीन-आधारित ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म भारत में एक्सचेंज बिजनेस में क्रांति लेकर आया। जल्द ही एनएसई भारत में व्यापारियों/निवेशकों का पसंदीदा स्टॉक एक्सचेंज बन गया।

मुंबई में मुख्यालय, एनएसई ऑफरराजधानी निगमों के लिए क्षमताओं को बढ़ाना और के लिए एक व्यापार मंचइक्विटीज, ऋण और डेरिवेटिव -- मुद्राओं और म्यूचुअल फंड इकाइयों सहित। यह नई लिस्टिंग, आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ), ऋण जारी करने और भारतीय . के लिए अनुमति देता हैभंडार भारत में पूंजी जुटाने वाली विदेशी कंपनियों द्वारा प्राप्तियां (आईडीआर)।

ग्वारसीड में ऑप्शन ट्रेडिंग की हुई शुरुआत, वित्त मंत्री ने कहा किसानों को होगा फायदा

ऑप्शन ट्रेडिंग एक ऐसा वायदा कारोबार होता है जिसमें खरीदार के पास अधिकार तो होता है लेकिन उसे किसी निश्चित तारीख पर या उससे पहले विशिष्ठ दाम पर संपत्ति को खरीदने या बेचने दायित्व नहीं होता है

Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: January 14, 2018 14:50 IST

Option trading launched in Guarseed - India TV Hindi

Option trading launched in Guarseed

नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने रविवार को कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स पर ग्वारसीड में विकल्प कारोबार का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि इस नई पहल से किसानों को फायदा होगा और उन्हें आगामी दिनों में बेहतर मूल्य मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि कुछ स्थानों पर कुछ कृषि जिंसों के ऊंचे उत्पादन की वजह से कीमतों में गिरावट आई है। वित्त मंत्री ने कहा कि विकल्प कारोबार किसानों को इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए एक प्रमुख कदम है। एमसीएक्स के बाद एनसीडीईएक्स जिंसों का विकल्प कारोबार शुरू करने वाला दूसरा एक्सचेंज है।

अक्तूबर, 2017 में एमसीएक्स ने सोने में ऑप्शन कारोबार शुरू किया था। ग्वारसीड पहला कृषि जिंस है जिसमें ऑप्शन कारोबार शुरू किया गया है। जेटली ने इस मौके पर कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि इस पहल से आगामी दिनों में किसानों को भारी फायदा मिलेगा।’’ किसानों के योगदान की सराहना करते हुए जेटली ने कहा कि देश की सेवा के लिए उन्होंने कोई प्रयास नहीं छोड़ा है। उन्हें अनाज की कमी वाले देश को अधिशेष उत्पादन वाला देश बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। हालांकि, ऊंचे उत्पादन की वजह से अब उन्हें कीमतों में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है।

वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘कुछ स्थानों पर अधिक उत्पादन की वजह से हम कीमतों में गिरावट की समस्या का सामना कर रहे हैं। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। किसानों को इस स्थिति से बाहर लाने के लिए पिछले कुछ सालों में कई कदम उठाए गए हैं।’’ उन्होंने कहा कि विकल्प कारोबार भी इसी दिशा में उठाया गया कदम है। उन्होंने कहा कि शुरुआत में विकल्प कारोबार छोटा कदम लगेगा, लेकिन आने वाले दिनों में इसके बारे में जागरूकता बढ़ने के बाद इससे किसानों को फायदा होगा।

इस मौके पर एनसीडीईएक्स के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी समीर शाह ने कहा, ‘‘विकल्प कारोबार मूल्य जोखिमों की हेजिंग करने का बेहतर माध्यम है। हमें भरोसा है कि इससे कृषि जिंस बाजार के विकास को बढ़ावा मिलेगा।’’ एनसीडीईएक्स के चेयरमैन रवि नारायण दास ने कहा, ‘‘यह बजट घोषणा को आंशिक रूप से पूरा करना है। मुझे उम्मीद है कि वित्त मंत्री इस क्षेत्र के लिए और घोषणाएं करेंगे।’’ इस मौके पर नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद, नाफेड के प्रबंध निदेशक संजीव कुमार चड्ढा के अलावा वित्त मंत्रालय और सेबी के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।

क्या होता है ऑप्शन कारोबार?

ऑप्शन ट्रेडिंग एक ऐसा वायदा कारोबार होता है जिसमें खरीदार के पास अधिकार तो होता है लेकिन उसे किसी निश्चित तारीख पर या उससे पहले विशिष्ठ दाम पर संपत्ति को खरीदने या बेचने दायित्व नहीं होता जिंसों और स्टॉक्स ट्रेडिंग है।

मोपा ने केंद्र सरकार से खाद्य तेलों और तिलहन पर लगी स्टॉक सीमा हटाने की उठाई मांग

मोपा यानी मस्टर्ड ऑयल प्रोड्यूसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने केंद्रीय वित्त मंत्री से मुलाकात कर खाद्य तेलों और तिलहन पर वर्तमान में लागू स्टॉक सीमा हटाने और खाद्य तेलों के वायदा बाजार को फिर से शुरू करने को लेकर अपने तर्क रखे.

मोपा ने केंद्र सरकार से खाद्य तेलों और तिलहन पर लगी स्टॉक सीमा हटाने की उठाई मांग

मस्टर्ड ऑयल प्रोड्यूसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (मोपा) के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात कर उनसे खाद्य तेलों और तिलहन पर वर्तमान में लागू स्टॉक सीमा हटाने और वायदा बाजार को फिर शुरू करने की मांग की है. प्रतिनिधिमंडल में मोपा के संयुक्त सचिव अनिल चतर के साथ सुरेश नागपाल और हेमंत गोयल शामिल थे. चतर ने कहा कि खाद्य तेलों के भाव 4 महीने में 40 से 45 फीसदी घटकर कोरोना महामारी के पहले स्तर पर पहुंच गया है. परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को अब सस्ते भाव पर खाद्य तेल उपलब्ध हो रहा है. इसलिए स्टॉक लिमिट हटाई जानी चाहिए.

तीनों ने मंत्री को ध्यान दिलाया कि पिछले 3 वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों से खाद्य तेल मार्केट को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तिलहन फसलों का अधिक उत्पादन करने का अनुरोध कर रहे हैं. उनकी अपील पर देश के किसानों ने बड़े पैमाने पर सरसों सहित अन्य तिलहन फसलों का उत्पादन भी किया, जिसके कारण भारत के खाद्य तेलों का आयात 150 लाख टन से घटकर 135 लाख टन पर आ गया. इससे हम आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़े.

स्टॉक सीमा की वजह से नुकसान

मोपा के संयुक्त सचिव अनिल चतर ने मंत्री से कहा कि खाद्य तेलों के भाव अब काफी घट गए हैं. परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को अब सस्ते भाव पर खाद्य तेल उपलब्ध हो रहा है. मगर किसानों को यदि तिलहन का उचित भाव नहीं मिलता है तो ऐसे में फिर कहीं आयात की नौबत न आ जाए. इससे हमारे प्रधानमंत्री का तिलहन के क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के सपने की मुहिम को धक्का लगेगा. आज तेल तिलहन पर स्टॉक सीमा की वजह से उद्योग एवं व्यापार जगत डरा हुआ सा है. कई उद्योग बंद पड़ने लगे हैं.

वायदा बाजार के लिए मोपा का तर्क

इसलिए यह जरूरी है कि भारतीय वायदा व्यापार में खाद्य तेल, तिलहन को जिंसों और स्टॉक्स ट्रेडिंग प्रतिबंधित नहीं किया जाए. इससे विदेशी बाजारों में तेजी आएगी जिससे हमारा भारतीय बाजार प्रभावित प्रभावित होगा. कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से सप्लाई चेन में बाधा आई थी. केंद्र सरकार ने इस बाबत निरंतर प्रयास भी किए लेकिन परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे. उन्होंने कहा कि वायदा बाजार तो खाद्य तेलों में स्थिरता प्रदान करने का हथियार है और सट्टेबाजी रोकने में अहम भूमिका निभाता है.

किसानों पर पड़ा है असर

चतर ने कहा कि पूरे विश्व में सभी कृषि जिंसों में वायदा कारोबार किसी भी विपरीत परिस्थिति में चालू रहता है. उस पर प्रतिबंध नहीं रहता क्योंकि विश्व में किसान एवं उपभोक्ता के बीच प्राइस बेस का उचित रूप से समन्वय रहता है. उन्होंने कहा कि वायदा बाजार पर प्रतिबंध लगने के कारण इसका विपरीत प्रभाव किसानों एवं उपभोक्ताओं पर पड़ा है. वह असमंजस की स्थिति में रहता है कि उसका माल किस भाव पर बिकेगा और उपभोक्ताओं को यह पता नहीं लगता उसे किस भाव पर माल खरीदना पड़ेगा. इतना ही नहीं, वायदा बाजार पर प्रतिबंध लगने से भारत सरकार के राजस्व में भारी कमी देखने को मिलती है.

कम हो सकती है तिलहन की पैदावार

यदि इस दिशा में समय से उचित कदम नहीं उठाए गए तो तिलहन की पैदावार में कमी की संभावना हो सकती है और इसका सीधा लाभ विदेशी बाजारों को मिल जाएगा. ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने इससे पहले सोयाबीन आयल, सोयाबीन सीड, चना, ग्वार, ग्वारगम, अरंडी आदि कृषि जिंसों के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाया था किंतु उचित समय पर सरकार ने इसे फिर से बहाल कर दिया, जिसके परिणाम अनुकूल रहे.

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खाद्य तेलों के वायदा बाजार को शुरू करने की मांग

मोपा के संयुक्त सचिव ने कहा कि तेल और तिलहन के स्टॉक सीमा फरवरी 2022 में कुछ महीनों के लिए लगाई गई थी और बाद में इसे दिसंबर 2022 तक बढ़ा दिया गया. उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि किसानों, उपभोक्ताओं एवं उद्योग जगत के हित में सरकार को इसके स्टॉक सीमा को तुरंत खत्म करना चाहिए. तेल, तिलहन यानी सरसों, सोयाबीन सोया तेल और क्रूड पाम तेल के वायदा बाजार को चालू कर देना चाहिए. इससे किसानों और उपभोक्ताओं समेत उद्योग जगत को राहत मिलेगी और सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी.

मोपा ने केंद्र सरकार से खाद्य तेलों और तिलहन पर लगी स्टॉक सीमा हटाने की उठाई मांग

मोपा यानी मस्टर्ड ऑयल प्रोड्यूसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने केंद्रीय वित्त मंत्री से मुलाकात कर खाद्य तेलों और तिलहन पर वर्तमान में लागू स्टॉक सीमा हटाने और खाद्य तेलों के वायदा बाजार को फिर से शुरू करने को लेकर अपने तर्क रखे.

मोपा ने केंद्र सरकार से खाद्य तेलों और तिलहन पर लगी स्टॉक सीमा हटाने की उठाई मांग

मस्टर्ड ऑयल प्रोड्यूसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (मोपा) के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात कर उनसे खाद्य तेलों और तिलहन पर वर्तमान में लागू स्टॉक सीमा हटाने और वायदा बाजार को फिर शुरू करने की मांग की है. प्रतिनिधिमंडल में मोपा के संयुक्त सचिव अनिल चतर के साथ सुरेश नागपाल और हेमंत गोयल शामिल थे. चतर ने कहा कि खाद्य तेलों के भाव 4 महीने में 40 से 45 फीसदी घटकर कोरोना महामारी के पहले स्तर पर पहुंच गया है. परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को अब सस्ते भाव पर खाद्य तेल उपलब्ध हो रहा है. इसलिए स्टॉक लिमिट हटाई जानी चाहिए.

तीनों ने मंत्री को ध्यान दिलाया कि पिछले 3 वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों से खाद्य तेल मार्केट को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तिलहन फसलों का अधिक उत्पादन करने का अनुरोध कर रहे हैं. उनकी अपील पर देश के किसानों ने बड़े पैमाने पर सरसों सहित अन्य तिलहन फसलों का उत्पादन भी किया, जिसके कारण भारत के खाद्य तेलों का आयात 150 लाख टन से घटकर 135 लाख टन पर आ गया. इससे हम आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़े.

स्टॉक सीमा की वजह से नुकसान

मोपा के संयुक्त सचिव अनिल चतर ने मंत्री से कहा कि खाद्य तेलों के भाव अब काफी घट गए हैं. परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को अब सस्ते भाव पर खाद्य तेल उपलब्ध हो रहा है. मगर किसानों को यदि तिलहन का उचित भाव नहीं मिलता है तो ऐसे में फिर कहीं आयात की नौबत न आ जाए. इससे हमारे प्रधानमंत्री का तिलहन के क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के सपने की मुहिम को धक्का लगेगा. आज तेल तिलहन पर स्टॉक सीमा की वजह से उद्योग एवं व्यापार जगत डरा हुआ सा है. कई उद्योग बंद पड़ने लगे हैं.

वायदा बाजार के लिए मोपा का तर्क

इसलिए यह जरूरी है कि भारतीय वायदा व्यापार में खाद्य तेल, तिलहन को प्रतिबंधित नहीं किया जाए. इससे विदेशी बाजारों में तेजी आएगी जिससे हमारा भारतीय बाजार प्रभावित प्रभावित होगा. कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से सप्लाई चेन में बाधा आई थी. केंद्र सरकार ने इस बाबत निरंतर प्रयास भी किए लेकिन परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे. उन्होंने कहा कि वायदा बाजार तो खाद्य तेलों में स्थिरता प्रदान करने का हथियार है और सट्टेबाजी रोकने में अहम भूमिका निभाता है.

किसानों पर पड़ा है असर

चतर ने कहा कि पूरे विश्व में सभी कृषि जिंसों में वायदा कारोबार किसी भी विपरीत परिस्थिति में चालू रहता है. उस पर प्रतिबंध नहीं रहता क्योंकि विश्व में किसान एवं उपभोक्ता के बीच प्राइस बेस का उचित रूप से समन्वय रहता है. उन्होंने कहा कि वायदा बाजार पर प्रतिबंध लगने के कारण इसका विपरीत प्रभाव किसानों एवं उपभोक्ताओं पर पड़ा है. वह असमंजस की स्थिति में रहता है कि उसका माल किस भाव पर बिकेगा और उपभोक्ताओं को यह पता नहीं लगता उसे किस भाव पर माल खरीदना पड़ेगा. इतना ही नहीं, वायदा बाजार पर प्रतिबंध लगने से भारत सरकार के राजस्व में भारी कमी देखने को मिलती है.

कम हो सकती है तिलहन की पैदावार

यदि इस दिशा में समय से उचित कदम नहीं उठाए गए तो तिलहन की पैदावार में कमी की संभावना हो सकती है और इसका सीधा लाभ विदेशी बाजारों को मिल जाएगा. ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने इससे पहले सोयाबीन आयल, सोयाबीन सीड, चना, ग्वार, ग्वारगम, अरंडी आदि कृषि जिंसों के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाया था किंतु उचित समय पर सरकार ने इसे फिर से बहाल कर दिया, जिसके परिणाम अनुकूल रहे.

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खाद्य तेलों के वायदा बाजार को शुरू करने की मांग

मोपा के संयुक्त सचिव ने कहा कि तेल और तिलहन के स्टॉक सीमा फरवरी 2022 में कुछ महीनों के लिए लगाई गई थी और बाद में इसे दिसंबर 2022 तक बढ़ा दिया गया. उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि किसानों, उपभोक्ताओं एवं उद्योग जगत के हित में सरकार को इसके स्टॉक सीमा को तुरंत खत्म करना चाहिए. तेल, तिलहन यानी सरसों, सोयाबीन सोया तेल और क्रूड पाम तेल के वायदा बाजार को चालू कर देना चाहिए. इससे किसानों और उपभोक्ताओं समेत उद्योग जगत को राहत मिलेगी और सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी.

Share Market: TDS कटौती को लेकर CBDT ने बड़ी राहत

किसी मान्य शेयर बाजार या जिंस एक्सचेंज से कारोबार के दौरान किसी भी मूल्य (50 लाख रुपये से अधिक अधिक मूल्य के भी) के शेयरों या जिंसों की खरीद करने वाली कंपनियों को लेनदेन को लेकर स्रोत पर कर कटौती.

Share Market: TDS कटौती को लेकर CBDT ने बड़ी राहत

किसी मान्य शेयर बाजार या जिंस एक्सचेंज से कारोबार के दौरान किसी भी मूल्य (50 लाख रुपये से अधिक अधिक मूल्य के भी) के शेयरों या जिंसों की खरीद करने वाली कंपनियों को लेनदेन को लेकर स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) नहीं करनी होगी। आयकर विभाग ने यह बात कही है। आयकर विभाग ने एक जुलाई से स्रोत पर कर कटौती का प्रावधान लागू किया है। यह 10 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार वाली कंपनियों पर लागू होगा।

इस तरह की इकाइयों को एक वित्त वर्ष किसी निवासी से 50 लाख रुपये से अधिक की वस्तुओं की खरीद के भुगतान पर 0.1 प्रतिशत का टीडीएस काटने की जरूरत होती है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने कहा कि यह प्रावधान स्टॉक एक्सचेंजों के जरिये शेयरों या जिंसों के लेनदेन पर लागू नहीं होगा।

आयकर विभाग ने कहा कि उसे इस तरह के ज्ञापन मिले हैं कि कुछ एक्सचेंजों और समाशोधन निगमों के जरिये लेनदेन में आयकर कानून की धारा 194 क्यू के तहत टीडीएस के प्रावधानों के क्रियान्वयन में व्यावहारिक दिक्कतें होती हैं। कई बार इस तरह के लेनदेन में खरीदार और विक्रेता के बीच एक-दूसरे से अनुबंध नहीं होता।

सीबीडीटी की ओर से 30 जून को जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, ''इस तरह की कठिनाइयों को दूर जिंसों और स्टॉक्स ट्रेडिंग करने के लिए कानून की धारा 194 क्यू ऐसे मामलों में लागू नहीं होगी जिनमें प्रतिभूतियों और जिंसों का लेनदेन मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों या समाशोधन निगमों के जरिये हुआ है। कंपनियों द्वारा टीडीएस काटने संबंधित धारा 194 क्यू को 2021-22 के बजट में पेश किया गया था। यह प्रावधान एक जुलाई, 2021 से लागू हुआ है।

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