जिंक के विभिन्न अकार्बनिक स्रोत में जिंक सल्फेट, जिंक कार्बोनेट, जिंक फास्फेट एवं चिलेट शामिल हैं | सामान्यत: जिंक सल्फेट आसानी से उपलब्ध होने वाला सस्ता एवं जिंक का सर्वश्रेष्ट स्रोत हैं | इसमें 21 से 33 प्रतिशत तक जिंक की मात्रा होती है | यह जल में तीव्र घुलनशील होने हार्मोनिक पैटर्न की कमियां के कारण पौधों में जिंक की कमी को आसानी से पूरा करता है | मोनोहाइड्रेट जिंक सल्फेट (33 प्रतिशत जिंक) व हेप्टाहाइड्रेट जिंक सल्फेट (21 प्रतिशत जिंक) दोनों ही समान रूप से जिंक की कमी वाली मृदाओं में प्रयोग मृदा में तथा पर्णीय छिड़काव के माध्यम से पौधों पर किया जाता है |

हाइपोथायरायडिज्म थायरॉयड ग्रंथि का एक रोग है: ग्रंथि सामान्य मात्रा में थायराइड हार्मोन - थायरोक्सिन (T4) और ट्राईआयोडोथायरोनिन (T3) का उत्पादन करने में असमर्थ है - इसलिए रक्त में सामान्य मात्रा से कम मात्रा में मौजूद होते हैं।

सबसे आम कारण ऑटोइम्यून थायरॉयडिटिस है, यानी ग्रंथि के प्रति शरीर की अपनी आत्म-आक्रामकता की एक प्रक्रिया, प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा मध्यस्थता जो कि कार्यशील थायरॉयड ऊतक के प्रगतिशील विनाश का कारण बनती है।

एक अन्य अपेक्षाकृत लगातार कारण रेडियोआयोडीन द्वारा शल्य चिकित्सा हटाने या विनाश है, जिसे चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए प्रशासित किया जाता है, ग्रंथि का।

आयोडीन की कमी, एक ट्रेस तत्व जो थायराइड हार्मोन की रासायनिक संरचना में प्रवेश करता है, अतीत में हाइपोथायरायडिज्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण रहा है।

आज भी, हमें इसे कम करके नहीं आंकना चाहिए, भले ही अपेक्षाकृत हाल के अतीत की तुलना में, स्थिति बहुत बदल गई है: लोग समुद्र के किनारे जाते हैं, मछली खाते हैं, शंख खाते हैं, बाजार में आयोडीन युक्त नमक होता है और इस पर अधिक ध्यान दिया जाता है। डॉक्टरों द्वारा समस्या के लिए।

हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण क्या हैं?

हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण धीरे-धीरे प्रकट होते हैं और इसमें शामिल हैं:

  • fatigability
  • ठंड के प्रति असहिष्णुता
  • कब्ज
  • हृदय गति में कमी
  • कामेच्छा में कमी आई
  • वजन
  • मानसिक पीड़ा
  • मुश्किल से ध्यान दे
  • स्मृति हानि
  • कम मूड
  • तंद्रा
  • पेशीय सुन्नता
  • अत्यधिक मासिक धर्म प्रवाह
  • प्रतिक्रियाशील हाइपोग्लाइकेमिया
  • रूखी त्वचा
  • बालों के झड़ने

हाइपोथायरायडिज्म का निदान टीएसएच (थायरॉइड उत्तेजक हार्मोन) की एकाग्रता को मापने के लिए एक साधारण रक्त परीक्षण के साथ किया जा सकता है, हार्मोन जो टी 3 और टी 4 के उत्पादन को उत्तेजित करता है।

टीएसएच में हार्मोनिक पैटर्न की कमियां वृद्धि इसलिए इंगित करती है कि थायराइड निष्क्रिय है।

हाइपोथायरायडिज्म का उपचार और रोकथाम

हाइपोथायरायडिज्म के उपचार में सिंथेटिक थायराइड हार्मोन (थायरोक्सिन) के साथ प्रतिस्थापन चिकित्सा शामिल है, जो आमतौर पर रोगी द्वारा जीवन के लिए लिया जाता है।

उन्हें उचित मात्रा में लेने से कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है क्योंकि हम एक दवा नहीं दे रहे हैं बल्कि ग्रंथि द्वारा उत्पादित एक ही हार्मोन है।

उपचार के परिणामस्वरूप लक्षणों का पूर्ण प्रतिगमन और सामान्यता की पूर्ण बहाली होती है।

जिंक (जस्ते) की कमी से पौधों में होने वाले रोग एवं उनकी पहचान

poudho me zinc ki kami

सभी फसलों को बढवार के लिए एवं अच्छी उपज के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है | यह पोषक तत्व पौधे भूमि (मिट्टी) से प्राप्त करते हैं लगातार फसल उत्पादन करने से इन पोषक तत्वों की मिट्टी में कमी हो जाती है जिनकी पूर्ती के लिए किसान खाद का ही प्रयोग करते हैं | प्रत्येक खाद में कुछ पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते है परन्तु किसी भी खाद में सभी पोषक तत्व उपलब्ध नहीं होते है |जिंक जिसे आम भाषा में जस्ता कहते हैं भिफसलों के लिए आवशयक होता है | यह सूक्ष्म पोषक तत्व की श्रेणी में आता है |

दलहनी फसलों में जिंक की कमी के कारण प्रोटीन संचय की दर कम हो जाती है | पौधों के लिए जिंक मृदा से अवशोषण द्वारा प्रमुख रूप से प्राप्त होता है | सामन्यत: पौधों में जिंक की आदर्श मात्रा 20 मि.ग्रा. प्रति किलोग्राम शुष्क पदार्थ तक उपयुक्त मानी जाती है | पौधों के माध्यम से खाध पदार्थों में जिंक का संचय होता है और जीवित प्राणियों को जिंक प्राप्त होता है | दुनिया की आबादी का एक तिहाई भाग जिंक कुपोषण के जोखिम के अंतर्गत आता है | विशेष रूप से बच्चों में जिंक तत्व की कमी से कुपोषण बढ़ता जा रहा है | इसका प्रमुख कारण जिंक तत्व की कमी वाले आहार का सेवन करना है | किसान समाधान जिंक से पौधों में होने वाले रोग तथा निदान की जानकारी लेकर आया है |

जिंक का पौधों की वृद्धि में महत्व

  1. इसकी पौधों के कायिक विकास और प्रजनन क्रियाओं के लिए आवश्यक हार्मोन के संशलेषण में महत्वपूर्ण भूमिका
  2. पौधों में वृद्धि को निर्धारित करने वाले इंडोल एसिटिक अम्ल नामक हार्मोन के निर्माण में जिंक की अहम भूमिका
  3. पौधों में विभिन्न धात्विक एंजाइम में उत्प्रेरक के रूप में एवं उपपाचयक की क्रियाओं के लिए आवश्यक
  4. इसकी पौधों में कई प्रकार के एंजाइमों जैसे कार्बोनिक एनहाइड्रेज, डिहाइड्रोजीनेस, प्रोटीनेस एवं पेप्तिनेस के उत्पादन में मुख्य भूमिका
  5. जिंक का पौधों में प्रोटीन संशलेष्ण तथा जल अवशोषण में अप्रत्यक्ष रूप में भाग लेना
  6. पौधों के आनुवांशिक पदार्थ राइबोन्यूक्लिक अमल के निर्माण में भी इसकी भागीदारी |
  1. जिंक कमी के लक्षण पौधों की माध्यम पत्तियों पर आते हैं | जिंक की अधिक कमी से नई पत्तियां उजली निकलती हैं | पत्तियों की शिराओं के मध्य सफेद धब्बे में दिखाई देते हैं |
  2. मक्का में जिंक की कमी से सफेद कली रोग उत्पन्न होता है | अन्य फसलों जैसे नींबू की वामन पत्ती, आडू का रोजेट और धान में खैरा रोग उत्पन्न होता है |
  3. जस्ता हार्मोनिक पैटर्न की कमियां की कमी से तने की लम्बाई में कमी (गाँठो के मध्य भाग का छोटा होना) आ जाती है। बालियाँ देर से निकलती है और फसल पकने में विलम्ब होता है।
  4. तने की लम्बाई घट जाती है और पत्तियाँ मुड़ जाती है।

मृदा में जिंक उपलब्धता को प्रभावित करने वाले कारक

  1. मृदा पी–एच मान जैस –जैसे बढ़ता है वैसे – वैसे पौधों के लिए जिंक की उपलब्धता में कमी
  2. मृदा में कार्बनिक पदार्थ लिग्निन, हायूमिक और फल्विक अमल के रूप में पाया जाता है | जिंक इन कार्बनिक पदार्थों के साथ चिलेट जिंक यौगिक का निर्माण करता है, जो पौधों को आसानी से उपलब्धता हो जाता है | जिंक उर्वरक का उपयोग कार्बनिक खाद के साथ करने पर जिंक तत्व की बढती है उपलब्धता पौधों में
  3. फास्फोरसयुक्त उर्वरक का अधिक मात्रा में उपयोग करने पर या पहले से मृदा में उपलब्ध फास्फोरस की अधिक मात्रा होने पर जिंक की पौधों में उपलब्धता में कमी
  4. अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मृदा के जलमग्न होने के कारण अन्य पौध्क तत्वों की साद्रता अधिक हो जाती है, किन्तु जिंक तत्व की कमी हो जाती है इसलिए जल निकास का उचित प्रबधन आवश्यक
  5. मृदा का तापमान भी जिंक की उपलब्धता की प्रभावित करता है | मृदा के तापमान में कमी होने पर जिंक उपलब्धता घटती है | मृदा का तापमान बढने पर जिंक की उपलब्धता बढती है , इसलिए ठंडे क्षेत्रों में मृदा का तापमान नियंत्रित करने के लिए मल्च का उपयोग जरुरी |
  6. फसलों की प्रजातियाँ और किस्म भी जिंक तत्व की आवश्यकता एवं उपयोग करने में महत्वपूर्ण होती है | हर फसल की जिंक तत्व की आवश्यकता और उपयोग करने की क्षमता भिन्न – भिन्न होती है और यह जिंक के अवशोषण को प्रभावित करती है | फसलों का चयन एवं जिंक का उपयोग फसलों के अनुसार करने की जरूरत |

बाल झड़ना किस हॉर्मोन की कमी से होता है , कैसे करें झड़ते बालों का इलाज, जानें घरेलू उपचार

बाल झड़ना किस हॉर्मोन की कमी से होता है , कैसे करें झड़ते बालों का इलाज, जानें घरेलू उपचार

  1. प्रोलैक्टिन: यह हार्मोन पिट्यूटरी ग्लैंड से उत्पादित होता है, जो मुख्य रूप से ब्रेन के बेस पर स्थित होता है। यह हार्मोन सेंट्रल नर्वस सिस्टम, इम्यून सिस्टम, स्किन यूट्रस और मैमरी द्वारा उत्पादित होता है। महिलाओं में पीरियड्स साइकिल के अनुसार प्रोलैक्टिन का लेवल 2 से 0.025 मिलीग्राम / एमएल होता है लेकिन प्रोलैक्टिन लेवल 0.2 मिलीग्राम /एमएल होना हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया रोग के रूप में जाना जाता है। कई अध्ययनों के अनुसार हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया बाल झड़ने और पुरुषों में गंजापन (एंड्रोजेनिक एलोपेसिया) का कारण बनता है। एक अध्ययन के अनुसार, हाइपोथायरायडिज्म के साथ हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया महिलाओं में एंड्रोजेनेटिक एलोपेसिया यानि गंजेपन का कारण बनता है। 0.4 मिलीग्राम / मिलीलीटर प्रोलैक्टिन हेयर शाफ्ट यानि बालों को स्किन से अलग होने से रोकता है और प्रीमैच्युर केटाजन विकास को बढ़ाता है, जिससे बालों का बढ़ना रुक जाता है और बालों की जड़ें स्किन छोड़ना शुरू कर देती हैं जिसका परिणाम बालों के झड़ने के रूप में आता है।
  2. कोर्टिसोल: तनाव के कारण बाल झड़ते हैं। तनाव के कारण बालों के रोम प्रभावित होते हैं जिससे बालों का विकास नहीं हो पाता। तनाव की स्थिति में दो से चार महीने बाद बाल झड़ने शुरू हो जाते हैं। कोर्टिसोल हार्मोन एड्रेनल ग्लैंड द्वारा उत्पादित होता है। यानि लंबे समय तक तनाव में रहने से कोर्टिसोल उत्पादन होता है। पुराने दर्द से परेशान, बेरोजगार, शिफ्ट में काम करने वाले और हृदय की समस्याओं से पीड़ित लोगों में कोर्टिसोल का लेवल अधिक होने की समस्याएं ज्यादा होती हैं जिस वजह से उनके बाल झड़ने की अधिक संभावनाएं होती हैं। हेयर ग्रोथ के लिए प्रोटेयोग्लाईकैन्स और ह्यालूरोनन हेयर ग्रोथ के लिए महत्वपूर्ण स्किन एल्मेंट्स हैं। कोर्टिसोल का लेवल बढ़ना दोनों स्किन एल्मेंट्स को लगभग 40 फीसदी कम कर सकता है जिससे बाल बढ़ने का चक्र छोटा हो सकता है।
  3. डीएचटी: डीएचटी यानि डिहाइड्रोटेस्टोस्टेरॉन हार्मोन आनुवांशिक गड़बड़ी के साथ-साथ पुरुषों में गंजेपन का कारण बनता है। मेल पैटर्न बाल्डनेस में टेस्टोस्टेरोन नामक हॉर्मोन जो कि पुरुषों में अधिक मात्रा में मौजूद होता है और पुरुषों के प्रजनन अंगों की बढ़ोतरी और विकास के लिए जिम्मेदार होता है।
  4. एस्ट्रोजन- महिलाओं में बाल झड़ने के लिए एस्ट्रोजन हार्मोन की अहम भूमिका है। इसका लेवल बढ़ने से पुरुषों में हेयर ग्रोथ कम होती है। टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन दोनों बालों के विकास में बाधा डाल सकता है। बच्चें के जन्म के बाद बाल झड़ने की समस्या हो सकती है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद एस्ट्रोजन का लेवल बढ़ हार्मोनिक पैटर्न की कमियां जाता है।
  5. इंसुलिन: शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि गंजेपन का शिकार 35 साल से कम उम्र के लोगों में इंसुलिन का लेवल बढ़ा हुआ पाया गया था, जो मोटापे, हाई बीपी और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों के साथ जुड़ा हुआ है। खराब जीवनशैली और आनुवांशिक गड़बड़ी के कारण शरीर में इंसुलिन का लेवल बढ़ सकता है। इंसुलिन रेसिस्टेंट के कारण अग्न्याशय अधिक इंसुलिन का उत्पादन करने लगता है, जिससे ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। ब्लड शुगर लेवल बढ़ने से कोर्टिसोल का लेवल बढ़ता है जिसे बालों के झड़ने के साथ जोड़कर देखा जाता है। 35 साल से कम उम्र के लोगों में इंसुलिन हार्मोनिक पैटर्न की कमियां का लेवल ज्यादा पाया जाता है जिससे मोटापा, हाई बीपी और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियां हो सकती है। खराब जीवनशैली और गड़बड़ी की वजह से शरीर में इंसुलिन का लेवल बढ़ जाता है। इंसुलिन रेसिस्टेंट के कारण ज्यादा इंसुलिन का उत्पादन करने लगता है। ब्लड शुगर का लेवल कोर्टिसोल के लेवल बढ़ने से बढ़ता है, जो बालों के झड़ने से संबंधित है।
  6. थायराइड: बालों का झड़ना हाइपोथायरायडिज्म का एक लक्षण है। थायराइड हार्मोन हेयर फॉलिकल के सेल्स के साथ-साथ बॉडी के सेल्स को प्रभाव डालता हैं। बॉडी में कैलोरी बर्निंग रेट, बॉडी टेम्परेचर, हार्टबीट और मसल्स कॉन्ट्रेक्शन जैसे कामों को रेगुलेट करता है। थायराइड हार्मोन बाल विकास चक्र के चरण लंबा और बाल विकास के बाकी चरण को रोक देते हैं। थायराइड हार्मोन का लेवल बढ़ना और कम होना बालों के झड़ने का कारण बन सकता है। थायराइड विकार के उपचार के बाद बालों का विकास शुरू हो जाता है। जिंक की कमी हाइपोथायरायडिज्म की वजह से है। जिस वजह से थायराइड उपचार कराने के बाद बालों का विकास नहीं होता।

बाल झड़ना है आम जाने इसे रोकने के घरेलू उपाय:

  1. दही और नींबू: दही और नींबू का मेल आपके बालों का झड़ना रोककर एक प्राकृतिक मॉश्चराइज़र के तौर पर काम करता है। यह सिर की त्वचा के रुखेपन को दूर करता है और डैंड्रफ को कम करता है। इसे तैयार करने के लिए दही में नींबू के रस की कुछ बूंदें मिलाकर बालों पर लगाएं। सूखने के बाद इसे धोएं।
  2. गर्म तेल से मालिश: बालों की चमक और मजबूती के लिए गर्म तेल से मालिश करें। यह बालों को पोषण देता है और सर्दियों की ठंडी, रूखी हवाओं से सिर की त्वचा की रक्षा करता है।
  3. तेल और कपूर: अपने सिर और बालों को ठंडा रखने के लिए थोड़ी मात्रा में कपूर और तेल मिलाएं। फिर बालों पर लगाएं। यह डैंड्रफ और खुजली को दूर करने में मदद करता है।
  4. भाप: यह प्राकृतिक नमी को लौटाने और बालों को मजबूत बनाने में मददगार है। यह स्कैल्प में मौजूद छेदों को खोलता है, ताकि वह ज्यादा नमी सोख सकें ऐसे भाप लेने से बालों का झड़ना रुक सकता है।
  5. नीम और नारियल का तेल: यह सिर की त्वचा में खुजली और लालिमा पैदा करने वाली फफूंद के खिलाफ एंटी-फंगल तेल के तौर पर काम करता है। नीम और नारियल का तेल साथ मिलकर डैंड्रफ और सिर की त्वचा की खुजली के खिलाफ एक एंटीसेप्टिक का काम करता है।
  6. नीम का पेस्ट और दही: नीम की पत्तियों के पेस्ट को दही के साथ मिलाकर सिर की त्वचा पर लगाने से बालों का झड़ना कम होता है। इसके अलावा इससे सफेद बालों की समस्या कम होती है और बाल लंबे और खूबसूरत होते हैं।

Weight Gain Cause: देर रात को कम खाकर भी आप हो सकते हैं मोटे, जानिए रात के खाने और मोटापा का कनेक्शन

देर रात खाने से एनर्जी फैट में बदलने लगती है. Image : Canva

  • News18Hindi
  • Last Updated : October 19, 2022, 20:40 IST

हाइलाइट्स

देर रात खाना खाने पर शरीर में लेप्टिन हार्मोन का स्तर अगले 24 घंटे के दौरान बहुत कम हो जाता है
देर रात तक खाते हैं उन्हें कई क्रॉनिक बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है

Late night eating increase weight: हमारी फूड हैबिट्स इतनी ज्यादा खराब हो गई है कि हम खाने के नाम पर सिर्फ पेट भरते हैं. सुबह का नाश्ता अक्सर स्किप कर देते हैं दोपहर के खाने में खूब खाते हैं और शाम को भी हैवी नाश्ता कर लेते हैं जिसका नतीजा ये होता है कि हमें रात को समय पर भूख नहीं लगती. डिनर करने का सही समय 7-8 बजे का हैं लेकिन हमारी फूड्स हैबिट्स की वजह से हम देर रात खाना खाते हैं. लेकिन हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के नए अध्ययन में कहा गया है कि देर रात खाना आपको मोटापा का शिकार बना सकता है. देर रात तक डिनर करने से ब्लड में शुगर का स्तर कम हो सकता है और इम्युनिटी कमजोर हो सकती है. उससे भी ज्यादा असर डिनर में मौजूद अनहेल्दी फूड्स से होता है जो पाचन को खराब करते है और अपच जैसी परेशानियों का कारण बनते हैं. आप भी बढ़ते मोटापा से परेशान हैं तो सबसे पहले अपनी देर रात खाने की आदत को बदलें. आइए जानते हैं कि हार्मोनिक पैटर्न की कमियां देर रात खाना खाना कैसे मोटापा को बढ़ाता है.

इन्सोमनिया-नींद न आना

आज वैश्विक आबादी का एक बड़ा भाग इन्सोमनिया या अनिद्रा की समस्या से ग्रस्त है। भारत में यह समस्या अत्यधिक गंभीर है। महानगरों के 50 प्रतिशत लोग पूरी नींद नहीं ले पाते। अनुसंधानकर्ताओं का दावा है कि अनिद्रा करीब 86 प्रतिशत बीमारियों का कारण है जिनमें अवसाद सबसे प्रमुख है। जानिए क्या है-


अनिद्रा क्या है? इन्सोमनिया या अनिद्रा एक स्लीप डिसआॅर्डर है, जिसमें नींद लगने या उतनी देर तक सोने में समस्या आती है, जितनी देर आप सोना चाहें। यह किसी भी उम्र में हो सकती है। यह दो प्रकार का होता है शार्ट टर्म (तीन सप्ताह तक) या लांग टर्म (तीन सप्ताह से अधिक)।


अनिद्रा के चार पैटर्न हैं- नींद आने में समस्या, रात में नींद खुल जाना और दोबारा न आना, सुबह उठने के बाद फ्रेश अनुभव न करना, दिन में नींद आना, उत्तेजना या चिड़चिड़ापन।
पर्याप्त नींद क्या है? ‘पर्याप्त नींद’ वह है जब आप अगले दिन तरोताजा और चुस्त अनुभव करते हैं। अधिकतर वयस्कों के लिए यह मात्रा 6-8 घंटे होती है, लेकिन बहुत से लोगों के लिए यह 9-10 घंटे होती है। कुछ के लिए यह मात्रा छह घंटे या उससे भी कम होती है। जो लोग नियमित रूप से 6-8 घंटे की नींद लेते हैं उनका स्वास्थ्य बेहतर रहता है। नींद दो प्रकार की होती है गहरी नींद, जिसमें अगर व्यक्ति पांच घंटे भी सो जाता है तो शरीर को आराम मिल जाता है। दूसरी कच्ची नींद, ये भले ही आठ घंटे की हो तो भी शरीर को आराम नहीं मिलता और दिन भर थकान और सुस्ती बनी रहती है।

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