राजनीति की मार झेलता वायदा कारोबार
वित्तमंत्री चाहते थे कि मांग और मुद्रास्फीति को कम करने के लिए सरकारी खर्च कम किए जाने चाहिए जबकि आर्थिक विकास एवं व्यापार मंत्री चाहते थे कि गरीबों की मदद और अर्थव्यवस्था के विकास के लिए सरकारी खर्चे में बढ़ोतरी होनी चाहिए। (रूस में मुद्रास्फीति के साथ साथ उम्मीद की किरणें भी हैं: विश्व बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी हो रही है, तथा सरकार का राजस्व और निर्यात भी बढ़ रहा है।)
भारत में भ्रम की स्थिति को जिंसों के डेरिवेटिव मार्केट में उठाए गए कदमों से समझा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि हमारे नीति नियंता इन उपायों की निरर्थकता और कभी कभार इनके प्रतिघाती होने से बेखबर हैं। प्रधानमंत्री मुद्रास्फीति को रोकने के लिए प्रशासनिक कदम उठाने के खिलाफ अपनी आपत्ति जाहिर कर चुके हैं। उनका तर्क है कि इनसे आर्थिक उदारीकरण और सुधारों के प्रति हमारी प्रतिबध्दता के बारे में गलत संकेत जाता है।
वित्त मंत्री स्वीकार कर चुके हैं कि वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाना राजनीतिक फैसला था, न कि आर्थिक। फाइनेंशियल टाइम्स (19 मई) ने उनके वक्तव्य को उद्धृत करते हुए लिखा था, ”यह सही हो या गलत, अगर लोग मानते हैं कि वायदा कारोबार के चलते महंगाई बढ़ रही है तो लोकतंत्र में जनता की आवाज सुननी ही पड़ेगी।”
दिलचस्प है कि जब कृषि मंत्री कह रहे थे कि वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय नियामक द्वारा लिया गया है (मिंट 13 मई) उसी समय उसी समाचार पत्र में 22 मई को खबर आई कि फारवर्ड मार्केट कमीशन के चेयरमैन ने कहा कि वह इस बात से सहमत नहीं हैं कि वायदा कारोबार से कीमतें बढ़ती हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि इसका असर किसानों पर पड़ेगा क्योंकि कार्पोरेट खरीदार विदेशी बाजारों की ओर रुख करेंगे और ट्रेडर्स डब्बा यानी गैर आधिकारिक मार्केट में जाएंगे।
अगर देखें तो वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगने के बाद रबर की कीमतें आसमान छूने लगीं। राजनीतिक मजबूरियों को अगर दरकिनार कर दें तो क्या इस तरह के कोई ठोस सबूत हैं कि हाल ही में जिंसों की कीमतें बढ़ने की मुख्य वजह या इसके पीछे की एक बड़ी वजह वायदा कारोबार है? वैश्विक रूप से कमोडिटी फंड में ढेरों निवेश किया गया है, लेकिन उदाहरण के तौर पर क्या सट्टेबाजी तेजी से तेल की बढ़ती कीमतों की प्रमुख वजह है?
न्यूयार्क टाइम्स में हाल ही में प्रमुख अर्थशास्त्री पाल क्रूग्मैन ने तर्क दिया था कि वायदा कारोबार से एक ही सूरत में कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है, जब लोग जमाखोरी करने लगें। कच्चे तेल की कीमतों की हालिया बढ़ोतरी क्या कोई वायदा कारोबार कर सकता है? में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उन्होंने यह तर्क दिया है कि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह मांग और आपूर्ति के बीच बड़ी खाई का होना है, इसलिए ऊर्जा का संरक्षण बहुत जरूरी है।
अगर अमेरिका से तुलना करें तो फ्रांसीसी और जापानी प्रति व्यक्ति बहुत कम तेल खर्च करते हैं, जबकि उनका जीवन स्तर भी कम बेहतर नहीं है। भारत की ओर लौटें तो- वायदा बाजार और कीमतों के संबंध पर अभिजीत सेन समिति बनी थी, लेकिन यहां हालत यह हुई कि बीमारी की पहचान के पहले ही इलाज शुरू कर दिया गया। 16 महीने पहले ही गेहूं और दाल के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
समिति को रिपोर्ट तैयार करने में 14 माह लगे, जिसमें ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं मिला कि वायदा कारोबार और कीमतों में बढ़ोतरी में कोई संबंध है। समिति ने तो नहीं लेकिन डा. सेन ने व्यक्तिगत रूप से कहा कि वायदा कारोबार पर प्रतिबंध जारी रखना चाहिए और उसके बाद प्रतिबंधित वस्तुओं की श्रेणी में 4 जिंस और जुड़ गए। अब तो ऐसा लगता है कि सरकार किसानों के लिए जिंसों को बेचना और कठिन बना रही है, जिससे कीमतें कम हों।
इन प्रतिबंधों को लंबे समय तक जारी रखने से पड़ने वाले प्रभाव को लेकर कुछ करने की चिंता बढ़ रही है। जैसा कि वायदा बाजार के चेयरमैन ने एक साक्षात्कार में कहा ”…दो साल पहले… कीमतों को नियंत्रित करने के लिए जूट के कॉन्ट्रैक्ट निष्क्रिय कर दिए गए थे… कीमतों पर सीलिंग लागू करना किसानों के हित में नहीं रहा और उसके बाद से जूट कॉन्ट्रैक्ट नहीं हुए।”
हमें कीमतों की बढ़ोतरी में वायदा कारोबार के हाथ होने के बारे में विचार करने के पहले कुछ प्रमुख विंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए, एक ओर जहां हर खरीदार कीमतों में बढ़ोतरी की उम्मीद करता है, वहीं इसके विपरीत एक विक्रेता की सोच होती है। इसके बिना खरीद-फरोख्त नहीं होती, वायदा कारोबारी परजीवी नहीं होते- वे बाजार की प्रभावी गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
हेजर्स (और आर्बिट्रेजर्स) अकेले ऐसा नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने निर्देश दिया था कि बैंक, ब्याज वायदा बाजार का इस्तेमाल केवल हेजिंग के लिए कर सकते हैं, उस समय भी वायदा अनुबंध शुरू नहीं हुए थे और ऐसे में बाजार में जितनी कम नकदी होती थी, सौदे की लागत और उसमें उतार-चढ़ाव उतना ही ज्यादा बढ़ने का अंदेशा रहता था।
ऐसे मामले में अगर ट्रेडिंग पर लंबे समय के लिए प्रतिबंध लागू रहता है, तो क्या कोई वायदा कारोबार कर सकता है? इससे तमाम समस्याएं होंगी और बाद में इसे हटाए जाने में भी कठिनाई आएगी, क्योंकि हम अक्सर यथास्थिति बनाए रखने में यकीन रखते हैं।
आम चुनाव से पहले 35,000 पहुंच सकता है सोना
रुपए की कमजोरी, शेयर बाजार में गिरावट का रुख और शादियों के चलते हाजिर बाजार में सोने की मजबूत खरीदारी ये कई ऐसे कारण हैं जो सोने की कीमतों में उछाल के संकेत दे रहे हैं.मार्केट एक्सपर्ट सोने की कीमतें आगामी लोकसभा चुनाव से पहले 35000 के पार निकलने की संभावना जता रहे हैं.
शुभम शंखधर/मंजीत ठाकुर
- 06 फरवरी 2019,
- (अपडेटेड 06 फरवरी 2019, 4:21 PM IST)
रुपए की कमजोरी, शेयर बाजार में गिरावट का रुख और शादियों के चलते हाजिर बाजार में सोने की मजबूत खरीदारी, ये कई ऐसे कारण हैं जो सोने की कीमतों में उछाल के संकेत दे रहे हैं. दिल्ली हाजिर बाजार में सोना बुधवार को 34,450 रुपए प्रति 10 ग्राम के भाव पर बिक रहा है. इसी महीने सोने की कीमतें 34,500 रुपए का स्तर छू चुकी हैं. यह अगस्त, 2013 में बने 34,890 के ऊपरी करीब स्तर के करीब है. वायदा बाजार में सोने के भाव 33,420 रुपए (6 फरवरी दोपहर दो बजे) के स्तर पर कारोबार कर रहे हैं. यानी हाजिर बाजार में सोना वायदा बाजार की तुलना में 1 हजार रुपए प्रीमियम पर बिक रहा है. मार्केट एक्सपर्ट सोने की कीमतें आगामी लोकसभा चुनाव से पहले 35,000 के पार निकलने की संभावना जता रहे हैं.
एक्सपर्ट का नजरिया
केडिया कमोडिटीज के प्रबंध निदेशक अजय केडिया कहते हैं, "घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई ऐसे संकेत बन रहे हैं, जिनके बल पर सोने क्या कोई वायदा कारोबार कर सकता है? की कीमतों के आगामी आम चुनाव से पहले 35,000 का स्तर पार कर सकती हैं." अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने के भाव 11 महीने की ऊंचाई पर है. वहीं भारतीय बाजार में सोने के भाव अगस्त, 2013 के करीब हैं. केडिया आगे कहते हैं, "बीते तीन-चार साल में सोने ने निवेशकों को बेहतर रिटर्न नहीं दिए हैं. लेकिन बीते तीन से चार महीनों में 11 फीसदी से ज्यादा का उछाल आ चुका है. ऐसे में निवेशकों का रुझान बढ़ा तो साल के दौरान सोना 36,500 का स्तर छू सकता है."
क्या हैं तेजी के कारण?
• अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर और घरेलू बाजार में रुपए की कमजोरी सोने की कीमतों को बल दे रही है. सरकार राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से चूक सकती है. ऐसी संभावना के चलते रुपया 71 – 72 रुपए प्रति डॉलर के करीब कारोबार कर रहा है. शेयर बाजार भी इस उलझन से बेचैन है और निवेशक शेयर बाजार से पैसा निकालकर क्या कोई वायदा कारोबार कर सकता है? सुरक्षित निवेश विकल्प की तरफ रुख कर रहे हैं. यह सोने में तेजी का बड़ा कारण है. रुपए की कमजोरी सोने को और महंगा कर देती है क्योंकि आयात के लिए ज्यादा रुपए खर्च करने होते हैं.
• इस साल शादियों का सीजन मजबूत है. ऐसे में हाजिर बाजार में सोने की खरीदारी को बल मिलेगा. यही कारण है कि हाजिर बाजार में सोना वायदा बाजार की तुलना क्या कोई वायदा कारोबार कर सकता है? में 1000 रुपए के प्रीमियम पर बिक रहा है.
• केंद्रीय बैंकों की की ओर से सोने में खरीद के कारण मांग में इजाफा हुआ है. मजबूत मांग सोने की कीमतों को बल देगा. मौजूदा साल में भी आरबीआइ की ओर से अच्छी खरीद देखने को मिली तो सोने के लिए यह सकारात्मक होगा. इसके अलावा ब्रेक्जिट या ट्रेड वॉर जैसी जियो पॉलिटिकल टेंशन सोने की चमक को बढ़ाएंगी.
जिंस वायदा बाजार में भाग ले सकेंगे विदेशी निवेशक, सेबी ने दी मंजूरी
सेबी का सबसे महत्वपूर्ण कदम विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को गैर-कृषि जिंस वायदा और चुनिंदा गैर-कृषि मानक सूचकांकों में कारोबार की अनुमति देना है. शुरू में एफपीआई को नकद में ही सौदों के निपटान की अनुमति होगी.
पूंजी बाजार नियामक सेबी Securities and Exchange Board of India (SEBI) ने बुधवार को विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) को एक्सचेंज में कारोबार वाले जिंस वायदा बाजार में भाग लेने की अनुमति दे दी. इस कदम से बाजार का दायरा और तरलता बढ़ेगी.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के निदेशक मंडल की बैठक में यह निर्णय किया गया. साथ ही म्यूचुअल फंड और पोर्टफोलियो प्रबंधकों के संचालन से संबंधित नियमों में संशोधन को भी मंजूरी दी गई है. इसके अलावा, एसईसीसी (प्रतिभूति अनुबंध नियमन) नियमन के प्रावधान में संशोधन को भी स्वीकृति दी गयी.
सेबी का सबसे महत्वपूर्ण कदम विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को गैर-कृषि जिंस वायदा और चुनिंदा गैर-कृषि मानक सूचकांकों में कारोबार की अनुमति देना है. शुरू में एफपीआई को नकद में ही सौदों के निपटान की अनुमति होगी.
सेबी ने निदेशक मंडल की बैठक के बाद एक विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘‘ एक्सचेंज में कारोबार वाले जिंस वायदा (ईटीसीडी) बाजार में एफपीआई की भागीदारी से नकदी और बाजार दायरा बढ़ने की उम्मीद है. साथ ही इससे बेहतर मूल्य सामने आएगा.’’
नियामक ने पहले ही श्रेणी तीन के अंतर्गत आने वाले वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ), पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवा और म्यूचुअल फंड को ईटीसीडी बाजार में भागीदारी की अनुमति दे दी है.
इसके साथ मौजूदा व्यवस्था में भारतीय जिंस बाजार में वास्तविक निवेश की जरूरत थी. अब यह समाप्त हो गया है. कोई भी विदेशी निवेशक अगर देश के भौतिक जिंसों में निवेश के साथ या उसके बिना भारतीय ईटीसीडी खंड में भाग लेने का इच्छुक है, वह एफपीआई मार्ग के जरिये यह कर सकता है.
वर्तमान में भारतीय जिंस बाजार में वास्तविक निवेश करने वाली विदेशी इकाइयों यानी पात्र विदेशी इकाइयों को जिंस वायदा बाजार में भाग लेने की अनुमति है.
हालांकि, बड़े स्तर पर खरीद क्षमता वाले वित्तीय निवेशक के रूप में एफपीआई को ईटीसीडी खंड में भाग लेने की अनुमति नहीं है.
अब एफपीआई को देश के ईटीसीडी बाजार में भाग लेने की अनुमति होगी. लेकिन यह जोखिम प्रबंधन उपायों पर निर्भर है.
इसके अलावा, सेबी और बाजार प्रतिभागियों के प्रतिनिधियों को लेकर एक कार्यकारी समूह बनाया गया है. यह समूह इस बात पर विचार करेगा कि क्या एफपीआई के लिये जोखिम प्रबंधन को लेकर और उपाय किये जाने की जरूरत है. सेबी ने कहा, ‘‘परिपत्र के जरिये प्रभावी तिथि को अधिसूचित किया जाएगा.’’
निदेशक मंडल ने म्यूचुअल फंड नियमों में संशोधन को भी मंजूरी दी है. इसका मकसद ऐसे प्रायोजकों के लिये ‘सहयोगी’ की परिभाषा को हटाना है, जो बीमा पॉलिसी या ऐसी अन्य योजनाओं के लाभार्थियों की ओर से विभिन्न कंपनियों में निवेश करते हैं.
इसके अलावा, पोर्टफोलियो प्रबंधकों के नियमों में संशोधन को मंजूरी दी गयी है. इसका उद्देश्य सहयोगियों और संबंधित इकाइयों में निवेश सहित पोर्टफोलियो प्रबंधकों द्वारा निवेश को लेकर मानदंडों को बढ़ाना है.
सेबी के निदेशक मंडल ने प्रतिभूति अनुबंध (नियमन) (शेयर बाजार और समाशोधन निगम) नियमन में संशोधन को भी मंजूरी दी. इसका मकसद एसईसीसी नियमन को आरबीआई ‘सेंट्रल काउंटर पार्टी’ निर्देशों के समरूप बनाना है. निदेशक मंडल ने सेबी की सालाना रिपोर्ट 2021-22 को भी स्वीकृति दी. रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी जाएगी.
SEBI ने चने के वायदा कारोबार पर कसी नकेल, नया कॉन्ट्रेक्ट लॉन्च नहीं होगा, नई पोजिशन की भी अनुमति नहीं
सेबी के आदेश के बाद अब NCDEX पर कोई भी अगला वायदा सौदा लॉन्च नहीं होगा, हालांकि अगस्त, सितंबर और अक्तूबर वायदा की एक्सपायरी तक इनमें कारोबार होता रहेगा।
Edited by: India TV Paisa Desk
Updated on: August 16, 2021 22:32 IST
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SEBI ने चने के वायदा कारोबार पर कसी नकेल, नया कॉन्ट्रेक्च लॉन्च नहीं होगा, नई पोजिशन की भी अनुमति नहीं
मुंबई। शेयर और कमोडिटी बाजार रेग्युलेटर सेबी (SEBI) ने दालों की बढ़ती महंगाई को देखते हुए चने के वायदा (Chana Futures) कारोबार पर नकेल कस दी है। सेबी ने कमोडिटी एक्सचेंज NCDEX को चने के वायदा कारोबार को लेकर कुछ हिदायतें दी हैं और तुरंत प्रभाव से उन हिदायतों को लागू करने के लिए कहा है। सेबी की तरफ से कहा गया है कि अगले आदेश तक NCDEX पर चने का कोई भी नया वायदा सौदा लॉन्च नहीं होगा।
फिलहाल एक्सचेंज पर अगस्त, सितंबर और अक्तूबर वायदा के लिए ट्रेड हो रहा है और सोमवार को सभी वायदा में 3-4 प्रतिशत का उछाल देखने को मिला है। सेबी के आदेश के बाद अब NCDEX पर कोई भी अगला वायदा सौदा लॉन्च नहीं होगा, हालांकि अगस्त, सितंबर और अक्तूबर वायदा की एक्सपायरी तक इनमें कारोबार होता रहेगा। सेबी के इस कदम से NCDEX पर चने में सट्टेबाजी पर लगाम लग सकेगी।
SEBI ने सिर्फ चने के नए वायदा सौदों की लॉन्चिंग पर ही रोक नहीं लगाई है बल्कि चने में कारोबारियों को नई पोजिशन लेने पर भी रोक लगा दी है। अब चने में सिर्फ अपनी पजिशन काटने की अनुमति होगी, कारोबारी खरीदारी या बिकवाली का कोई नया सौदा नहीं कर सकेंगे। सेबी ने NCDEX से कहा है कि वह तुरंत प्रभाव से इन हिदायतों को लागू कर दे।
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