Important Points विकास के कुछ सिद्धांत हैं, जो विकास की विशेषताओं को दर्शाते हैं, ये निम्न हैं:

प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता

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विकास का कौन-सा सिद्धांत बताता है कि शरीर के विभिन्न तंत्र अलग-अलग दरों पर विकसित होते हैं?

'विकास'प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता शब्द किसी व्यक्ति में गुणात्मक परिवर्तन जैसे व्यक्तित्व में परिवर्तन या अन्य मानसिक और भावनात्मक पहलुओं को संदर्भित करता है। हालांकि, बहुत बार वृद्धि और विकास को अदले-बदले से उपयोग किया जाता है। व्यक्ति की शारीरिक परिपक्वता (वृद्धि) प्राप्त करने प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता के बाद भी विकास की प्रक्रिया जारी रहती है। जब व्यक्ति पर्यावरण के साथ अंत: क्रिया करता है तो वह निरंतर परिवर्तन (प्रगति) करता है।

Key Points

प्रणालियों की स्वतंत्रता का सिद्धांत:

  • दर में विभेदन का सिद्धांत: दर में विभेदन इंगित करता है कि व्यक्ति के विकास की दर भिन्न-भिन्न होती हैं। लड़कों और लड़कियों में विकास प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता की दर में अंतर होता है, उदाहरण के लिए विकास के शुरुआती चरण में लड़कियां, लड़कों की तुलना में अधिक तेज़ी से वृद्धि करती हैं।

अतः, हम विचार कर सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में विकास की एक अलग दर होती है। इसलिए, विकास प्रणालियों की स्वतंत्रता के सिद्धांत का अनुसरण करता है।

Important Points विकास के कुछ प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता सिद्धांत हैं, जो विकास की विशेषताओं को दर्शाते हैं, ये निम्न हैं:

  • निरंतरता का सिद्धांत: विकास निरंतरता के सिद्धांत का अनुसरण करता है जो गर्भाधान के साथ शुरू होता है और मृत्यु के साथ समाप्त होता है। यह जीवन में कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है।
  • व्यक्तिगत भिन्नताओं का सिद्धांत: इसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में अद्वितीय है क्योंकि आनुवंशिकता और पर्यावरणीय कारक उसे दूसरों से अलग बनाते हैं।
  • सामान्यता से विशिष्टता का सिद्धांत : विकास की प्रक्रिया सामान्य प्रतिक्रियाओं से शुरू होती है जो बच्चे द्वारा प्रदर्शित की जाती हैं, जैसे-जैसे वह बाद के चरणों से गुजरता है, वह विशिष्ट व्यवहार दिखाना शुरू करता है।
  • अंतरसंबंध का सिद्धांत: एक व्यक्ति का विकास जीवन के सभी पहलुओं के संतुलित अंतर्संबंध के माध्यम से परिलक्षित होता है। किसी भी पहलू में विकास दूसरे पहलू को प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता भी प्रभावित करता है।
  • अंत: क्रिया का सिद्धांत: अंत:क्रिया सिद्धांत के अनुसार एक व्यक्ति आनुवंशिकता और पर्यावरण का उत्पाद है। दूसरे शब्दों में, अंत:क्रिया बच्चे के भीतर और बाहर के बलों के भीतर और बाहर होती है।
  • एकीकरण का सिद्धांत: एकीकरण का सिद्धांत शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक और नैतिक जैसे विकास के विभिन्न पहलुओं के एकीकरण को संदर्भित करता है।
  • पूर्वानुमान का सिद्धांत: विकास पूर्वानुमेय है अर्थात विकास के स्वरूप और अनुक्रम की एकरूपता की मदद से, हम बच्चे के वृद्धि और विकास के एक विशेष चरण में एक या अधिक पहलुओं में एक बच्चे के व्यवहार का काफी हद तक पूर्वानुमान कर सकते हैं।
  • अनुक्रमिकता का सिद्धांत: इसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में परिवर्तन में अंतर होते हैं, फिर भी वे परिवर्तन समान अनुक्रम का पालन करते हैं।

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Last updated on Dec 13, 2022

CTET Pre-Admit Card for December 2022 Exam Released! The CTET exam is to be conducted between 29th December 2022 to 23rd January 2023. The exact exam dates will be mentioned in the CTET Admit Card. The CTET Application Correction Window was active from 28th November 2022 to 3rd December 2022. The detailed Notification for CTET (Central Teacher Eligibility Test) December 2022 cycle was released on 31st October 2022. The last date to apply was 24th November 2022. The CTET exam will be held between December 2022 and January 2023. The written exam will consist of Paper 1 (for Teachers प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता of class 1-5) and Paper 2 (for Teachers of classes 6-8). Check out the CTET Selection Process here. Candidates willing to apply for Government Teaching Jobs must appear for this examination.

प्लेटो का न्याय सिद्धांत की क्या विशेषताएँ बताइयें ?

1. प्लेटो का न्याय सिद्धांत कार्यों की विशिष्टीकरण पर जोर देता है। प्लेटों की दृष्टि में व्यक्ति एवं राज्य के जीवन का उद्देश्य श्रेष्ठता प्राप्त करना है। इसके लिए आवश्यक है कि राज्य के प्रत्येक वर्ग या व्यक्ति अपने कार्यों में श्रेष्ठता प्राप्त करके अपने कार्यों का सम्पादन करें।

2. प्लेटों का न्याय सिद्धांत अहस्तक्षेप के सिद्धांत पर आधारित है। यह अपेक्षा करता है कि राज्य के प्रत्येक वर्ग अन्य वर्गों के कार्यों में हस्तक्षेप किए बिना अपने कार्यों का सम्पादन करें।

3. प्लेटो का न्याय सिद्धांत मानव के हृदय में सद्गुणों का विकास करके उसे अच्छा मनुष्य बनाना चाहता है।

4. प्लेटो न्याय सिद्धांत का प्रतिपादन करके यह दिखाना चाहता है कि व्यक्ति व समाज में कोई संघर्ष नहीं है। वह व्यक्ति को यह आभास कराना चाहता है कि वह समाज एवं राज्य का एक जिम्मेदार सदस्य है और वह समाज व राज्य में रहकर ही अपना विकास कर सकता है।

5. प्लेटों का न्याय कानूनी विषय न होकर सामाजिक नैतिकता का विषय है। प्लेटों का न्याय एक नैतिक संहिता है जो प्रत्येक व्यक्ति को स्वकर्तव्य पालन का संदेश देता है।

6. प्लेटो का न्याय ब्राह्य जगत की वस्तु न होकर आन्तरिक स्थिति है।

7. प्लेटों का न्याय सिद्धान्त समाज के विभिन्न वर्गों की एकता व सामन्जस्य पर बल देता है।

राजनीतिक सिद्धांत की प्रमुख विशेषताओं को संक्षेप में समझाइये।

राजनीतिक सिद्धांत की कुछ मूलभूत विशेषताएँ स्पष्ट की जा सकती हैं। राजनीतिक सिद्धांत मूलतः व्यक्ति की बौद्धिक और राजनीतिक कृति है। सामान्यतः यह एक व्यक्ति का चिन्तन होते हैं जो राजनीतिक वास्तविकता अर्थात् राज्य की सैद्धान्तिक व्याख्या करने का प्रयत्न करते हैं।

  • विभिन्न चिन्तकों के मत - प्रत्येक सिद्धांत अपने आप में एक परिकल्पना होता है जो सही अथवा गलत दोनों हो सकता है और जिसकी आलोचना की जा सकती है अतः सिद्धांतों के अन्तर्गत हम विभिन्न चिन्तकों द्वारा किये गये अनेक प्रयत्न पाते हैं जो राजनीतिक जीवन के रहस्यों का उद्घाटन करते रहे हैं। इन चिन्तकों ने अनेक व्याख्यायें प्रस्तुत की हैं जो हो सकता है हमें प्रभावित न करें परन्तु जिनके बारे में हम कोई अन्तिम राय (सही अथवा गलत) स्थापित नहीं कर सकते। राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक जीवन के उस विशेष सत्य की व्याख्या करते हैं जैसा कोई चिन्तक उसे देखता या अनुभव करता है। ऐसे राजनीतिक सत्य की अभिव्यक्ति हमें प्लेटो के 'रिपब्लिक', अरस्तू के प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता ‘पॉलिटिक्स' अथवा रॉल्स की ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस' में मिलती है।
  • व्यक्ति, समाज व इतिहास का वर्णन - राजनीतिक सिद्धांतों में व्यक्ति, समाज तथा इतिहास की व्याख्या होती है। ये व्यक्ति और समाज की प्रकृति की जांच करते हैं - एक समाज कैसे संगठित होता है और कैसे काम करता है, इसके प्रमुख तत्व कौन से हैं. विवादों के विभिन्न स्रोत कौन से हैं, उन्हें किस तरह हल किया जा सकता है, आदि।
  • विषय विशेष पर आधारित - राजनीतिक सिद्धांत किसी विषय-विशेष पर आधारित होते हैं, अर्थात, हालांकि एक विचारक का उद्देश्य राज्य की प्रकृति की व्याख्या करना ही होता है परन्तु वह विचारक एक दार्शनिक, इतिहासकार, अर्थशास्त्री, धर्मशास्त्री अथवा समाजशास्त्री कुछ भी हो सकता है। अतः हम कई तरह के राजनीतिक सिद्धांत पाते हैं जिनमें इन विषयों की अद्वितीयता के आधार पर अन्तर किया जा सकता है।
  • सामाजिक परिवर्तन के आधार - राजनीतिक सिद्धांतों का उद्देश्य केवल राजनीतिक वास्तविकता को समझना और उसकी व्याख्या करना ही नहीं है बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिये साधन जुटाना और ऐतिहासिक प्रक्रिया को तेज करना भी है। जैसा कि लास्की लिखते है, राजनीतिक सिद्धांतों का कार्य केवल तथ्यों की व्याख्या करना ही नहीं हैं परन्तु यह निर्धारण करना भी है कि क्या होना चाहिये। अतः राजनीतिक सिद्धांत सामाजिक स्तर पर सकारात्मक कार्य तथा उनके कार्यान्वयन के लिये सुधार, क्रान्ति अथवा संरक्षण जैसे साधनों की सिफारिश करते हैं। इनका सम्बन्ध साधन तथा साध्य दोनों से है। यह दोहरी भूमिका निभाते हैं-'समाज को समझना और उसकी गलतियों में सुधार करने के तरीके जुटाना'।
  • विचारधारा पर आधारित - राजनीतिक सिद्धांतों में विचारधारा का समावेश भी होता है। आम भाषा में विचारधारा का अर्थ विश्वासों, मूल्यों और विचारों की उस व्यवस्था से होता है जिससे लोग शासित होते हैं। आधुनिक युग में हम कई तरह की विचारधारायें पाते हैं, जैसे, उदारवाद, मार्क्सवाद, समाजवाद आदि। प्लेटो से लेकर आज तक सभी राजनीतिक सिद्धांतों में किसी न किसी विचारधारा का प्रतिबिम्ब अवश्य है। राजनीतिक विचारधारा के रूप में राजनीतिक सिद्धांतों में उन राजनीतिक मूल्यों, संस्थाओं और व्यवहारों की अभिव्यक्ति होती है जो कोई समाज एक आदर्श के रूप में अपनाता है। उदाहरण के लिये, पश्चिमी यूरोप और अमरीका के सभी राजनीतिक सिद्धांतों में उदारवादी विचारधारा प्रमुख रही है। इसके विपरीत चीन और पूर्व सोवियत यूनियन में एक विशेष प्रकार के मार्क्सवाद का प्रभुत्व रहा। इस सन्दर्भ में ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रत्येक विचारधारा स्वयं को सर्वव्यापक और परम सत्य के रूप में प्रस्तुत करती है और दूसरों को अपनाने के लिये बाध्य करती है। परिणामस्वरूप वैचारिक संघर्ष आधुनिक राजनीतिक सिद्धांतों का एक विशेष अंग रहा है।

संक्षेप में, राजनीतिक सिद्धांतों का सम्बन्ध राजनीतिक घटनाओं की व्याख्या और मूल्यांकन से है और इनका प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता अध्ययन विचारों तथा आदर्शों के विवरण के रूप में, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के साधन के रूप में अथवा विचारधारा के रूप में किया जा सकता है।

प्रकृतिवाद

प्रकृतिवाद के दर्शन के अनुसार प्रकृति अपने आपमें पूर्ण तत्व है। इस दर्शन के अनुसार, प्रत्येक वस्तु प्रकृति से उत्पन्न होती है और फिर उसी में विलीन हो जाती है। प्रकृतिवादी इंद्रियों के अनुभव से प्राप्त ज्ञान को ही सच्चा ज्ञान मानते हैं तथा उसके अनुसार सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए मनुष्य को स्वयं निरीक्षण परीक्षण करना चाहिए।

प्राकृतिकवादियों के मतानुसार, मनुष्य की अपनी एक प्रकृति होती है जो पूर्ण रूप से निर्मल है, उसके अनुकूल आचरण करने में उसे सुख और संतोष होता है तथा प्रतिकूल आचरण करने पर उसे दुख और असंतोष का अनुभव होता है। इसलिए प्राकृतिक वादियों के अनुसार मनुष्य को अपनी प्रकृति के अनुकूल ही आचरण करना चाहिए। दूसरे शब्दों प्रत्येक सिद्धांत की विशेषता में प्रकृति वादी मनुष्य को अपनी प्रकृति के अनुकूल आचरण करने की स्वतंत्रता देते हैं तथा वे उसे किन्ही सामाजिक नियमों एवं आध्यात्मिक बंधनों में जकड़ कर नहीं रखना चाहते। इस प्रकार यह प्राकृतिक नैतिकता के पक्षधर हैं।

प्रकृतिवाद

प्रकृतिवाद परिभाषाएं

प्रकृतिवाद के संबंध में कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्न हैं

प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जो प्रकृति को ईश्वर से अलग करती है, आत्मा को पदार्थ भौतिक तत्वों के अधीन मानती है और परिवर्तनशील नियमों को सर्वोच्च मानती है।

जेप्स वार्ड के अनुसार

प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जिस की प्रमुख विशेषता आध्यात्मिकता को अस्वीकार करना है अथवा प्रकृति एवं मनुष्य के दार्शनिक चिंतन में उन बातों को स्थान देना है जो हमारे अनुभवों से परे नहीं है।

जायसे के अनुसार

प्रकृतिवाद विज्ञान नहीं है वरन विज्ञान के बारे में दावा है। अधिक स्पष्ट रूप से यह इस बात का दावा करता है कि वैज्ञानिक ज्ञान अंतिम है जिसमें विज्ञान से बाहर अथवा दार्शनिक जान को कोई स्थान नहीं है।

आर बी पैरी के अनुसार

प्रकृतिवाद आदर्शवाद के विपरीत मन को पदार्थ के अधीन मानता है और यह विश्वास करता है कि अंतिम वास्तविक भौतिक है आध्यात्मिक नहीं।

थॉमस और लैंग
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