प्रॉपर्टी ब्रोकर और ब्रोकरेज फर्म के बीच मुख्य अंतर

एक विशाल संपत्ति बाजार में, कभी-कभी संपत्ति ब्रोकर, रियल एस्टेट एजेंट या रियल्टी सलाहकार के बिना एक संपत्ति खरीदने या बेचने के लिए संभव नहीं हो सकता है, जो आपको उसी के साथ मदद करता है। इस मामले में, क्या आपको अपने लिए काम करने के लिए एक व्यक्तिगत एजेंट या ब्रोकरेज फर्म को चुनना चाहिए? हम कुछ उत्तरों को खोजने की कोशिश करते हैं, जो प्रत्येक ऑफ़र के लाभों को देखते हैं।

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स्टॉक ब्रोकर कौन सा चुने? स्टॉक ब्रोकर के साथ किन किन बातो का ध्यान रखे। How to select a stock broker?

स्टॉक ब्रोकर कौन सा चुने? स्टॉक ब्रोकर के साथ किन किन बातो का ध्यान रखे।

स्टॉक मार्किट में इन्वेस्टमेंट करते समय सबसे बड़ा सवाल होता है की हम अपना ब्रोकर कौन सा चुने। आज हम इस आर्टिकल में यही चर्चा करेंगे। पिछले कुछ सालो में शेयर बाजार में डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट करने वाले इन्वेस्टर की संख्या में बढोत्तहरी हुई है। इस साल 2022 डीमैट खातों की कुल संख्या 10 करोड़ के पर पहुंच चुकी है। बहुत से ब्रोकर मार्किट में आ चुके है। नए ब्रोकर में ज्यादातर स्टार्ट अप है। कम्पटीशन के इस समय ब्रोकरेज दर काफी कम हो चुकी है। इतने ब्रोकर्स में से एक सही ब्रोकर चुनना बहुत कठिन काम है। हमे किस ब्रोकर को चुनना है फुल टाइम ब्रोकर या फिर डिस्काउंट ब्रोकर? ऐसे बहुत से सवाल है जिनका ध्यान हमें ब्रोकर चुनते समय करना चाहिए। आइये जानते है वो है वो कौन से मुख्य बिंदु है जिनका ध्यान चाहिए।

आप ट्रेडर है या निवेशक?

पहले ये निश्चित कर ले की आपको ट्रेडिंग करनी है या इन्वेस्टिंग यदि आपको ट्रेडिंग करनी है तो डिस्काउंट ब्रोकर चुने। इन्वेस्टर को फुल टाइम ब्रोकर के साथ जाना चाहिए। ट्रेडिंग में आप बार बार स्टॉक्स को बेचते और खरीदते हो ऐसे में ब्रोकरेज बचाने के लिए डिस्काउंट ब्रोकर के साथ ही जाना चाहिए जो आपको 15 से 20 प्रति लोट चार्ज करते है। डिस्काउंट ब्रोकर से आप ब्रोकरेज का एक बड़ा अमाउंट बचा सकते है।

हमेशा चेक करे शेयर आपके डेपॉजिटरी अकाउंट में आये या नहीं।

स्टॉक खरीदने के T + 2 (ट्रेडिंग + 2 दिन ) दिन के बाद अपने डीमैट अकाउंट को चेक करे, T+2 (ट्रेडिंग + 2 दिन ) दिन के बाद स्टॉक्स डीमैट अकाउंट में ही होने चाहिए। ब्रोकर के पास ट्रेडिंग अकाउंट होता है डीमैट अकाउंट डिपॉजिटरी के होता है। भारत में CDSL तथा NSDL दो डिपॉजिटरी है। यदि ऐसा नहीं होता है तो ब्रोकर को तुरंत अपने स्टॉक्स डिपॉजिटरी में ट्रांसफर करने के लिए कहे। यदि बार बार ब्रोकर यही गलती करता है और आपको हर बार ईमेल या फ़ोन करके अपने स्टॉक्स ट्रांसफर करवाने पड़ते है तो अपना ब्रोकर चेंज करे। अपने डीमैट अकाउंट को सप्ताह में एक बार जरूर चेक करे।

पावर ऑफ़ अटॉर्नी की जानकारी रखे।

अकाउंट ओपनिंग के समय ब्रोकर आपसे पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी पर सिगनेचर लेता है इसके बाद इसके बाद जब भी आप स्टॉक सेल करते है तो वो आपके डीमैट अकाउंट से स्टॉक माइनस कर देता है। जिसका की गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है और ऐसी कई घटनाये हो भी चुकी है। आज आप पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी दिए बिना अकाउंट ओपन करवा सकते हो। और CDSL TPIN का USE करके अपने स्टॉक को सेल कर सकते हो। यदि आप ऑफलाइन फॉर भर के यदि आप अकाउंट ओपन करवा रहे है तो POA फॉर्म पर सिगनेचर ना करे। ऑनलाइन मोड में आपको POA (पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी ) फॉर्म पोस्ट या कूरियर करके भेजना होता है। यदि आप नॉन पीओए अकाउंट चाहते है तो फॉर्म पर सिगनेचर ना करे।

मार्जिन के लालच में न पड़े।

ब्रोकर आपको टिप्स दे कर या मार्जिन का लालच देकर शेयर खरीदने को बोलता है तो ऐसे कभी न करे। मार्जिन में आप अपनी जमा राशि से अधिक के स्टॉक खरीद सकते है। यदि मार्जिन 5x है तो आप 10000 दे कर इंट्रा डे के लिए 50000 के स्टॉक्स खरीद सकते है। जो की जोखिम भरा हो सकता है। यदि आपने स्टॉप लॉस नहीं लगया तो स्टॉक्स के ज्यादा गिरने पर आपको ज़्यादा नुकसान हो सकता है। शुरआत में जो भी करे कॅश मार्किट में और अपने रिसर्च से करे। अपने आपको लर्निंग से इतना अनुभवी बनाये की टिप्स की जरुरत ना पड़े। हमेशा स्टॉक्स डिलीवरी के लिए खरीदे। नहीं तो म्यूच्यूअल फण्ड सही है।

स्टॉक प्लेज को डेपॉजिटरी अकाउंट की स्टेटमेंट चेक करे।

डेपॉजिटरी में आप ये भी चेक सकते हो की आपके स्टॉक्स प्लेज (गिरवी ) तो नई है। कई बार ब्रोकर आपकी जानकारी के बिना शेयर प्लेज कर देता है या फिर शेयर को डिपॉजिटरी में ट्रांसफर न करके ट्रेडिंग अकाउंट में ही रखता है। ऐसे करके वो इन स्टॉक्स से मार्जिन ले है और इसका इस्तेमाल दूसरे ट्रेडर्स को मार्जिन देने में कर सकता है या फण्ड का इस्तेमाल कही और कर सकता है। KARVY का डीमैट स्कैम इसका उदाहरण है KARVY ने 95000 कस्टमर की सिक्योरिटीज को उनकी अनुमति के बिना प्लेज कर के बैंक से 2300 करोड़ का लोन लिया था।

ब्रोकर का ट्रेडिंग प्लेटफार्म एक्सीलेंट होना चाहिए। सिस्टम हैंग न हो, स्टॉक खरीदते समय कोई GLITCH ना आये।

Explainer : क्‍या है अल्‍गो ट्रेडिंग और सेबी के किस नियम से ब्रोकर्स में मचा हड़कंप, क्‍या इस ट्रेडिंग से मिलता है तय रिटर्न?

सेबी ने अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर ब्रोकर्स के लिए नियम बना दिए हैं.

सेबी ने अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर ब्रोकर्स के लिए नियम बना दिए हैं.

सेबी ने हाल में ही अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर नियम बनाया है. देश में तेजी से बढ़ रही इस ट्रेडिंग को लेकर अभी तक कोई रेगुले . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : September 07, 2022, 15:15 IST

हाइलाइट्स

पिछले सप्‍ताह बाजार नियामक सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम बना दिए हैं.
स्‍टॉक की खरीद-फरोख्‍त पूरी तरह कंप्‍यूटर के जरिये की जाती है.
इसमें जैसे ही आप बटन दबाते हैं, कंप्‍यूटर ट्रेडिंग शुरू कर देता है.

नई दिल्‍ली. अग्‍लो ट्रेडिंग जिसका पूरा नाम अल्गोरिदम ट्रेडिंग (Algorithm Trading) है, यह वैसे तो भारत में नया कॉन्‍सेप्‍ट है लेकिन इसका इस्‍तेमाल साल 2008 से ही होता रहा है.

अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर अभी तक ब्रोकर तय रिटर्न का दावा करते थे, लेकिन पिछले सप्‍ताह बाजार नियामक सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम बना दिए हैं और इसके बाद से ट्रेडिंग की इस नई विधा पर बहस भी शुरू हो गई है. इस बहस को हवा तब मिली जब जिरोधा के फाउंडर निखिल कामत ने अल्‍गो ट्रेडिंग के तय रिटर्न वाले दावे पर सवाल उठाए. उन्‍होंने कहा, अभी तक इसे लेकर काफी भ्रम फैलाया जा चुका है.

कैसे होती है अल्‍गो ट्रेडिंग
अल्‍गो ट्रेडिंग में स्‍टॉक की खरीद-फरोख्‍त पूरी तरह कंप्‍यूटर के जरिये की जाती है. इसमें स्‍टॉक चुनने के लिए जिस गणना का उपयोग होता है, वह भी कंप्‍यूटर द्वारा ही किया जाता है. इसीलिए इसका नाम ऑटोमेटेड या प्रोग्राम्‍ड ट्रेडिंग भी है. इसके लिए कंप्‍यूटर में पहले से ही अलग-अलग पैरामीटर्स के हिसाब से गणनाएं फीड की जाती हैं. साथ ही स्‍टॉक को खरीदना या बेचना है उसका निर्देश, शेयर बाजार का पैटर्न और सभी नियम व शर्ते भी पहले से फीड कर दी जाती हैं. जैसे ही आप बटन दबाते हैं, कंप्‍यूटर ट्रेडिंग शुरू कर देता है.

इस सिस्‍टम का लिंक स्‍टॉक एक्‍सचेंज के सर्वर से जुड़ा होता है, लिहाजा बाजार की पल-पल की अपडेट भी मिलती रहती है. इसकी मदद से ट्रेडिंग का समय काफी बच जाता है और ब्रोकर को भी सही स्‍टॉक चुनने में मदद मिलती है. यही कारण है कि अभी तक ब्रोकर यह दावा करते थे कि अल्‍गो ट्रेडिंग के जरिये तय रिटर्न मिलना आसान है. उनका तर्क था कि यह सिस्‍टम किसी स्‍टॉक की भविष्‍य की संभावनाओं और पुराने प्रदर्शन का सही व सटीक आकलन कर सकता है.

क्‍यों पड़ी सेबी की निगाह
बाजार नियामक सेबी ने दिसंबर, 2021 में ही कहा था कि वह जल्‍द ही अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर कुछ नियम बनाने वाला है. सेबी के दखल देने की सबसे बड़ी वजह यह है कि अभी भारतीय शेयर बाजार में होने वाली करीब 50 फीसदी ट्रेडिंग इसी विधा के जरिये की जाती है. इससे पहले तक यह ट्रेडिंग पूरी तरह नियंत्रण से बाहर थी, लेकिन अब सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम बना दिए हैं.

क्‍या है सेबी का नया नियम
बाजार नियामक ने पिछले सप्‍ताह एक नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि जो भी ब्रोकर अल्‍गो ट्रेडिंग की सेवाएं देते हैं, वे प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष किसी भी रूप में स्‍टॉक के पुराने प्रदर्शन या भविष्‍य की संभावनाओं की जानकारी अपने उत्‍पाद के साथ नहीं दे सकेंगे. यह कदम ब्रोकर्स के उन दावों के बाद उठाया गया है, जिसमें अल्‍गो ट्रेडिंग की मदद से निवेशकों को तय और ऊंचे रिटर्न का झांसा दिया जाता था.

सेबी ने अपने सर्कुलर में यह भी कहा है कि अगर कोई ब्रोकर या उससे जुड़ी फर्म ने अपनी वेबसाइट या अन्‍य किसी माध्‍यम से किए गए प्रचार-प्रसार में अल्‍गो ट्रेडिंग से जुड़े इन कयासों का उल्‍लेख किया है तो सर्कुलर जारी होने के 7 दिन के भीतर उसे हटा दिया जाना चाहिए. निवेशकों के हितों को देखते हुए ब्रोकर भविष्‍य में ऐसा कोई प्रलोभन नहीं दे सकेंगे.

क्‍या सच में फायदेमंद है अल्‍गो ट्रेडिंग
भारतीय शेयर बाजार में अल्‍गो ट्रेडिंग का इस्‍तेमाल तेजी से बढ़ रहा है और अब तो आधे से ज्‍यादा ब्रोकर इसी का इस्‍तेमाल करते हैं. ऐसे में यह तो तय है कि अल्‍गो ट्रेडिंग कुछ फायदेमंद है, लेकिन इसका सही उपयोग तभी किया जा सकता है, जबकि ब्रोकर को कुछ सटीक जानकारियां मिल सकें. इसमें स्‍टॉक की हिस्‍ट्री, उसके आंकड़ों का वेरिफिकेशन और रिस्‍क मैनेजमेंट की गणना सबसे जरूरी है.

क्‍यों बढ़ रहा इसका चलन
1-हिस्‍ट्री की सही समीक्षा : सबसे जरूरी है कि किसी स्‍टॉक के पिछले प्रदर्शन की सही समीक्षा और उसके बाजार पैटर्न को समझकर ही उसके भविष्‍य में प्रदर्शन का आकलन लगाना चाहिए, जो कंप्‍यूटर बेहतर तरीके से करता है.
2-गलतियों की कम गुंजाइश : अल्‍गो ट्रेडिंग का पूरा काम कंप्‍यूटर के जरिये होता है. ऐसे में ह्यूमन एरर जैसी चीजों की आशंका शून्‍य हो जाती है. साथ ही यह रियल टाइम के प्रदर्शन के आधार पर भी स्‍टॉक का चुनाव कर सकता है.
3-भावनात्‍मक प्रभाव में कमी : अल्‍गो ट्रेडिंग में किसी स्‍टॉक का चुनाव करते समय मानवीय भावनाएं आती हैं, क्‍योंकि इसकी गणना और चुनाव पूरी तरह से मशीन के हाथ में होता है.
4-ज्‍यादा रणनीति का सृजन : कंप्‍यूटर एल्‍गोरिद्म के जरिये एक ही समय में सैकड़ों रणनीति बनाई जा सकती है. इससे आपका जोखिम प्रबंधन मजबूत होता है और निवेश पर ज्‍यादा रिटर्न कमाने के कई रास्‍ते खुलते हैं.
5-एरर फ्री ट्रेडिंग : अल्‍गो ट्रेडिंग पूरी तरह मशीन पर सही ब्रोकर कैसे चुनें और गलत नहीं है आधारित होने के नाते इसके जरिये गलत ट्रेडिंग या मानवीय गलतियों की आशंका भी खत्‍म हो जाती है. यही कारण है कि खुदरा निवेशकों में भी अब अल्‍गो ट्रेडिंग का चलन बढ़ रहा है.

इसके नुकसान भी हैं
-अल्‍गो ट्रेडिंग में बिजली की खपत ज्‍यादा होती है और पावर बैकअप न होने पर कंप्‍यूटर क्रैश भी हो सकता है. इससे गलत ऑर्डर, डुप्लिकेट ऑर्डर या फिर लापता ऑर्डर भी हो सकते हैं.
-ट्रेडिंग के लिए बनाई जा रही रणनीति और उसकी वास्‍तविक रणनीति के बीच अंतर हो सकता है. कई बार कंप्‍यूटर में खराबी की वजह से भी ऐसी स्थिति आ सकती है.
-कंप्‍यूटर आपको कई रणनीति और रिटर्न का कैलकुलेशन और रास्‍ता बताएगा, सही ब्रोकर कैसे चुनें और गलत नहीं है जो आपका नुकसान भी करा सकता है, क्‍योंकि बाजार की वास्‍तविक स्थितियां मशीनी रणनीति से अलग हो सकती हैं.

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शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों के लिए जरूरी खबर! SEBI ने इस ब्रोकर को किया बैन

BSE का 30 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स सेंसेक्स शुरुआती कारोबार में 350 अंक लुढ़क गया

SEBI ने कार्वी स्टॉक ब्रोकरेज लिमि​टेड (KSBL) को नए क्लाइंट्स जोड़ने और मौजूदा क्लाइंट्स के ​लिए ट्रेडिंग पर बैन लगा दि . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : November 23, 2019, 15:12 IST

नई दिल्ली. अगर आप शेयर बाजार (Stock Market) में निवेश करते हैं ये खबर आपको जरूर पढ़नी चाहिए. भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने स्टॉक ब्रोकरेज कंपनी कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग लिमिटेड (KSBL-Karvy Stock Brokers Limited) को एक ग्राहक का 2,000 करोड़ रुपये के डिफॉल्ट करने की वजह से बैन (Bans) कर दिया है. सेबी द्वारा कार्वी पर लगाया गया यह बैन तत्काल रूप से प्रभावी है. सेबी द्वारा लगाए गए बैन के मुताबिक, कंपनी अब न तो नए क्लाइंट्स को अपने साथ जोड़ सकती है और न ही मौजूदा ग्राहकों के लिए ट्रेड कर पाएगी.

एनएसई ने जांच में पाई बड़ी गड़बड़ी- नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE - National Stock Exchange) ने अपनी एक जांच में पाया था कि कथित रूप से कार्वी ने अपने ग्राहक का शेयर किसी संबंधित ईकाई को बेच दिया था. ​बाजार नियामक ने डिपॉजिटरीज को निर्देश दिया है कि वो कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के किसी निर्देश पर ध्यान न दें.

News18 Hindi

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)

ग्राहक क्या करें- एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर किसी का ब्रोकिंग खाता कार्वी में है तो उसे तुरंत बदल लेना चाहिए. यानी शेयर दूसरे ब्रोकिंग अकाउंट में शिफ्ट कर लेना ही सही सही ब्रोकर कैसे चुनें और गलत नहीं है होगी.

पावर ऑफ अटॉर्नी का गलता इस्तेमाल-नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने कहा है कि कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग ने पावर ऑफ अटॉर्नी (Power of Attorney) का गलत इस्तेमाल किया है. कार्वी ने अपने क्लाइंट का सिक्योरिटी अपनी सहायक कंपनियों की मदद से बेचा है. इससे मिलने वाले फंड को कंपनी ने अपनी जरूरतों के लिए इस्तेमाल किया है.

सेबी ने कहा, 'कर्वी स्टॉक ब्रोकरेज लिमिटेड ने इस बात को छिपाने के लिए जनवरी 2019 से लेकर अगस्त 2019 के दौरान नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को दिए गए सबमिशन में इसका कोई जिक्र नहीं किया है.

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  • News18Hindi
  • Last Updated : November 23, 2019, 15:12 IST

नई दिल्ली. अगर आप शेयर बाजार (Stock Market) में निवेश करते हैं ये खबर आपको जरूर पढ़नी चाहिए. भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने स्टॉक ब्रोकरेज कंपनी कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग लिमिटेड (KSBL-Karvy Stock Brokers Limited) को एक ग्राहक का 2,000 करोड़ रुपये के डिफॉल्ट करने की वजह से बैन (Bans) कर दिया है. सेबी द्वारा कार्वी पर लगाया गया यह बैन तत्काल रूप से प्रभावी है. सेबी द्वारा लगाए गए बैन के मुताबिक, कंपनी अब न तो नए क्लाइंट्स को अपने साथ जोड़ सकती है और न ही मौजूदा ग्राहकों के लिए ट्रेड कर पाएगी.

एनएसई ने जांच में पाई बड़ी गड़बड़ी- नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE - National Stock Exchange) ने अपनी एक जांच में पाया था कि कथित रूप से कार्वी ने अपने ग्राहक का शेयर किसी संबंधित ईकाई को बेच दिया था. ​बाजार नियामक ने डिपॉजिटरीज को निर्देश दिया है कि वो कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के किसी निर्देश पर ध्यान न दें.

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भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)

ग्राहक क्या करें- एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर किसी का ब्रोकिंग खाता कार्वी में है तो उसे तुरंत बदल लेना चाहिए. यानी शेयर दूसरे ब्रोकिंग अकाउंट में शिफ्ट कर लेना ही सही होगी.

पावर ऑफ अटॉर्नी का गलता इस्तेमाल-नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने कहा है कि कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग ने पावर ऑफ अटॉर्नी (Power of Attorney) का गलत इस्तेमाल किया है. कार्वी ने अपने क्लाइंट का सिक्योरिटी अपनी सहायक कंपनियों की मदद से बेचा है. इससे मिलने वाले फंड को कंपनी ने अपनी जरूरतों के लिए इस्तेमाल किया है.

सेबी ने कहा, 'कर्वी स्टॉक ब्रोकरेज लिमिटेड ने इस बात को छिपाने के लिए जनवरी 2019 से लेकर अगस्त 2019 के दौरान नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को दिए गए सबमिशन में इसका कोई जिक्र नहीं किया है.

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