बुल मार्केट: बुल मार्केट वह स्थिति है जिसमें वित्तीय बाजार बढ़ रहा है या फिर निकट भविष्य में ऐसा होने की उम्मीद है। 'बुल' वास्तविक दुनिया के बैल से लिया गया है, जो आमतौर पर ऊपर की दिशा में हमला करता है। यह या तो बेसलाइन पर शुरू होता है (आर्थिक गतिविधि की शुरुआत के दौरान) या फिर चक्र के नीचे। बाजार मजबूत होने पर बुल मार्केट सामने आता है और आगे की संभावनाएं बहुत ही आकर्षक होती हैं। यह निवेशकों के विश्वास को मजबूत करता है, जिसमें अधिक लोग खरीदना चाहते हैं और कम लोग बेचना चाहते हैं।

स्टॉक लाइफ साइकिल – कैसे पहचाने अपने शेयर की स्तिथि को उसके जीवन चक्र में?

प्रकृति में हर चीज़ एक चक्र से गुजरती है चाहे वो जीवित प्राणी हो या फिर मौसम| जिस प्रकार जीवित प्राणी अलग अलग दौर से गुजरते है जैसे की जन्म, विकाश, परिपक्वता और अंत में मृत्यु या पुनर्जन्म| मौसम भी चक्र का पालन करती है और पुरे वर्ष केवल एक ही प्रकार का मौसम नहीं होता| गर्मी का मौसम, मौसम-चक्र का एक अनिवार्य हिस्सा है और यह चार पांच माह के लिए आपके साथ ही रहेगी चाहे आपको पसंद हो या ना हो|

उसी प्रकार शेयर बाजार भी चक्र का पालन करती है| यह तय है की मंदी के बाद तेजी का दौर अवश्य आएगा परन्तु इसकी समय सीमा क्या होगी यह बोलना काफी मुश्किल है | अनुकूल परिस्थिति में यदि फल का आनंद लेना हो तो कठोर परिस्थिति में ढलना अत्यदिक आवश्यक है| यहाँ सबसे महत्वपूर्ण विषय है सैय्यम बनाये रखना|

स्टॉक लाइफ साइकिल के विभिन्न दौर

१. संचय चरण

यह चरण को ज्यादातर कंपनी के शुरुवाती दौर में या फिर एक स्थापित कंपनी के लंबे समय तक गिरावट के बाद देखी जाती है| एक ख़राब दौर से गुजरने के बाद, कंपनी स्वयं को पुन: र्निर्माण करने का प्रयत्न करती है| यह अवधि कुछ माह से कई वर्षो तक हो सकती है| शेयर्स ज्यादातर मालिकों के पास ही पड़ी होती है जिनका इरादा तब तक बेचने का नहीं होता जब तक मोटा मुनाफा ना कमा ले|

इस अवधि के दौरान शेयर एक दायरे के अंतर्गत चलती रहती है और इस दायरे का ऊपरी भाग एक प्रतिरोध की तरह काम करता है| इस दायरे बाजार चक्र के रुझान को समझना को तोड़ते ही यह एक नए दौर में शामिल हो जाएगी|

स्टॉक लाइफ साइकिल

२. विकास चरण

कंपनी के कारोबार में सुधार होते ही, यह अपने लम्बे समय से बने दायरे को ज्यादा वॉल्यूम से तोड़ कर विकास चरण में प्रवेश करती है| कारोबार में नियमित रूप से सुधार और नए निवेशक के प्रवेश करने से शेयर में तेजी आती है| इस चरण में शेयर अपने २०० दिन के मूविंग एवरेज के ऊपर ही काम करती है और बाजार चक्र के रुझान को समझना जब तक इसे नहीं तोड़ती तब तक इस शेयर में बने रहने में ही भलाई है|

३. वितरण चरण

होसियार शेयर धारक यह भलि भाती जानते है की अच्छा समय सदैव बरक़रार नहीं रह सकता और इस चरण तक आते आते शेयर काफी ओवर-वैल्यूड हो चुकी होती है| अच्छी आर्थिक समाचार और मोटी कमाई के मध्य, शेयर्स को छोटे शेयर धारको को बेच दिया जाता है| इस दौरान शेयर प्राइस एक दायरे के अंतर्गत ही घूमती रहती है और ये शिखर कुछ महीनो से कई सालो तक फैली हो सकती है| २०० दिन के मूविंग एवरेज को तोड़ते ही एक पूर्व चेतावनी मिल जाती है की अब तेजी जल्द ही मंदी में बदलने वाली है|

४. गिरावट चरण

जब शेयर गिरावट चरण में प्रवेश करती है, तब शुरुवात में कोई स्पष्ट कारण नहीं मालूम होता, परन्तु धीरे धीरे बुरी खबर के आने के पश्चात शेयर प्राइस और भी नीचे फिसलने लगती है| बीच बीच में शेयर झूठी ऊपरी चाल शुरू कर देती है जिससे की शेयर धारको को यह आभास हो की शेयर की गिरावट थम चुकी है|

इस चरण में सतर्कता बरतना काफी अनिवार्य है और जैसे ही शेयर प्राइस २०० दिन के मूविंग एवरेज के पास आ जाये, ये हमें अच्छी शार्ट की अवसर प्रदान करती है|

हिंदी में शेयर बाजारों के बारे में जानने के लिए आप नामांकन कर सकते हैं:शेयर बाजार कोर्स – नए निवेशकों के लिए |

मार्किट एक्सपर्ट्स से शेयर बाजार अब हुआ आसान कोर्स के साथ शेयर बाजार की मूल बातें जानें

स्टॉक लाइफ साइकिल उदहारण

चलिए शेयर के जीवन चक्र को एक व्यावहारिक उदहारण से समझते है|

यह रिलायंस कैपिटल का मासिक चार्ट है I इस चार्ट को यदि हम गौर से देखे तो हमें वर्ष २०००-२००५ के बिच एक अच्छा संचय चरण दिखाई पड़ता है| उसके पश्चात शेयर विकास चरण में प्रवेश कर जाता है|

वर्ष २००८ के बाद ये एक शिखर बना कर गिरावट चरण में प्रवेश करता है और १ वर्ष के अंतर्गत यह फिरसे वही आ खड़ा होता है जहा इसने शुरुवात करी थी|

Reliance capital stock life cycle

एक बार फिर वर्ष २०११ के बाद ये शेयर संचय चरण में प्रवेश कर जाता है| इस चरण के ऊपरी भाग में यह शेयर अभी प्रतिरोध झेल रहा है| यदि अच्छे वॉल्यूम से इस चरण को पार कर पता है, तो एक बार फिर यह विकास चरण में प्रवेश करने में सक्षम होगा|

स्टॉक लाइफ साइकिल निष्कर्ष

किसी भी कंपनी में निवेश करने से पहले, निवेशक एक ठोस कारण ढूढंते है| परन्तु उसमे एक कमी यह रह जाती है की उस कारण को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते, शेयर की कीमत ३००-४०० प्रतिशत बढ़ चुकी होती है|

एक शेयर को लेने का सही समय तब होता है, जब वह ख़राब समाचार से घिरा हुआ हो और किसी को शेयर लेने में कोई दिलचस्पी ना हो, दूसरी तरफ जब सब कुछ अच्छा लग रहा हो और सब शेयर को खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहे हो, उस वक़्त शेयर से निकल जाने में ही समझदारी है|

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क्या है 'बुल मार्केट' और 'बियर मार्केट'? जानिए शेयर बाजार से क्या है इसका संबंध

शेयर मार्केट

यदि आपने हर्षद मेहता के जीवन पर आधारित लोकप्रिय वेब सीरीज देखी है, तो आपको याद होगा कि उसमें 'मंदोड़िया' (बियर) और 'तेजड़िया' (बुल) के बारे में बताया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि बुल और बियर मार्केट, मार्केट एक्विटी का आधार हैं। ये निवेशकों और व्यापारियों को प्रचलित प्रवृत्ति के अनुसार अपना स्थान लेने में मदद करते हैं।

पर ये क्या हैं? आइए फिनोलॉजी के मुक्य कार्यकारी अधिकारी प्रांजल कामरा द्वारा जानते हैं इसके बारे में।

बिजनेस साइकल (व्यापार चक्र) को समझना
कोई भी बाजार कुछ आर्थिक सिद्धांतों के आधार पर बढ़ता है। इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक 'व्यापार चक्र' है, जिसे इकोनॉमिक साइकल या ट्रेड साइकल के रूप में भी जाना जाता है। ये चक्र लहर की तरह के पैटर्न हैं जो दीर्घकालिक विकास की प्रवृत्ति पर बनते हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि बाजार के आगे बढ़ने के साथ-साथ उनमें एक उछाल और गिरावट (मंदी) आती है। संक्षेप में, एक व्यापार चक्र की लंबाई एक उछाल और मंदी से लिया गया समय है।

सच कहा जाए, तो बाजार में इस तरह के उछाल और उतार-चढ़ाव काफी हैं और ये तकनीकी मंदी के बिना भी एक दिन, सप्ताह या महीने में हो सकते हैं। दूसरी ओर मंदी, दीर्घकालिक विकास प्रक्षेपवक्र की उपोत्पाद है, जिसकी अर्थव्यवस्था में आमतौर पर कम से कम दो तिमाहियों (प्रत्येक तीन बाजार चक्र के रुझान को समझना महीने) के लिए गिरावट आती है।

आइए अब जानते हैं कि एक बुल और बियर मार्केट क्या है

  • बुल मार्केट: बुल मार्केट वह स्थिति है जिसमें वित्तीय बाजार बढ़ रहा है या फिर निकट भविष्य में ऐसा होने की उम्मीद है। 'बुल' वास्तविक दुनिया के बैल से लिया गया है, जो आमतौर पर ऊपर की दिशा में हमला करता है। यह या तो बेसलाइन पर शुरू होता है (आर्थिक गतिविधि की शुरुआत के दौरान) या फिर चक्र के नीचे। बाजार मजबूत होने पर बुल मार्केट सामने आता है और आगे की संभावनाएं बहुत ही आकर्षक होती हैं। यह निवेशकों के विश्वास को मजबूत करता है, जिसमें अधिक लोग खरीदना चाहते हैं और कम लोग बेचना चाहते हैं।
  • बियर मार्केट: बियर मार्केट, बुल मार्केट के बिल्कुल विपरीत है। इस मामले में वित्तीय बाजार स्टॉक की कीमतों में गिरावट के साथ सुधार का अनुभव करता है और निकट अवधि में गिरने की उम्मीद करता है। बहुत कुछ 'बुल' की तरह, बियर मार्केट का 'बियर' भी वास्तविक दुनिया के भालू से लिया गया है, जो आमतौर पर नीचे की दिशा में हिट करता है। जब बाजार में संतृप्ति हो जाती है तो भालू का बाजार बढ़ जाता है क्योंकि बाजार संतृप्त हो जाता है (आपूर्ति मांग से अधिक हो जाती है)। यह आम तौर पर बुल-रन की ऊंचाई पर होता है और गर्त बनने तक जारी रहता है।

इस समय, अधिक लोग खरीदने के बजाय स्टॉक बेचने में रुचि रखते हैं और निवेशकों का विश्वास कमजोर है। एक हालिया उदाहरण पिछले साल की महामारी का हो सकता है, जिसमें अधिकांश निवेशक बाजार से बाहर निकलना चाहते थे क्योंकि किसी को नहीं पता था कि महामारी कैसे निकलकर सामने आएगी। आपको बुल और बियर मार्केट की एक मजबूत समझ विकसित करनी चाहिए और दिन, सप्ताह, महीने या वक्त वक्त पर इनके बारे में पढ़ना चाहिए। ऐसा करने का एक अच्छा विचार प्रासंगिक पुस्तकों का अध्ययन करना भी है जो इस तरह की अवधारणाओं में तल्लीन हैं। यदि आप ट्रेडिंग की कला सीखते हैं, तो आप बुल-रन के दौरान अपने रिटर्न को अधिकतम करते हुए एक मंदी के बाजार में भी मुनाफा कमा सकते हैं।

यदि आपने हर्षद मेहता के जीवन पर आधारित लोकप्रिय वेब सीरीज देखी है, तो आपको याद होगा कि उसमें 'मंदोड़िया' (बियर) और 'तेजड़िया' (बुल) के बारे में बताया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि बुल और बियर मार्केट, मार्केट एक्विटी का आधार हैं। ये निवेशकों और व्यापारियों को प्रचलित प्रवृत्ति के अनुसार अपना स्थान लेने में मदद करते हैं।

पर ये क्या हैं? आइए फिनोलॉजी के मुक्य कार्यकारी अधिकारी प्रांजल कामरा द्वारा जानते हैं इसके बारे में।

बिजनेस साइकल (व्यापार चक्र) को समझना
कोई भी बाजार कुछ आर्थिक सिद्धांतों के आधार पर बढ़ता है। इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक 'व्यापार चक्र' है, जिसे इकोनॉमिक साइकल या ट्रेड साइकल के रूप में भी जाना जाता है। ये चक्र लहर की तरह के पैटर्न हैं जो दीर्घकालिक विकास की प्रवृत्ति पर बनते हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि बाजार के आगे बढ़ने के साथ-साथ उनमें एक उछाल और गिरावट (मंदी) आती है। संक्षेप में, एक व्यापार चक्र की लंबाई एक उछाल और मंदी से लिया गया समय है।

सच कहा जाए, तो बाजार में इस तरह के उछाल और उतार-चढ़ाव काफी हैं और ये तकनीकी मंदी के बिना भी एक दिन, सप्ताह या महीने में हो सकते हैं। दूसरी ओर मंदी, दीर्घकालिक विकास प्रक्षेपवक्र की उपोत्पाद है, जिसकी अर्थव्यवस्था में आमतौर पर कम से कम दो तिमाहियों (प्रत्येक तीन महीने) के लिए गिरावट आती है।

आइए अब जानते हैं कि एक बुल और बियर मार्केट क्या है

    बुल मार्केट: बुल मार्केट वह स्थिति है जिसमें वित्तीय बाजार बढ़ रहा है या फिर निकट भविष्य में ऐसा होने की उम्मीद है। 'बुल' वास्तविक दुनिया के बैल से लिया गया है, जो आमतौर पर ऊपर की दिशा में हमला करता है। यह या तो बेसलाइन पर शुरू होता है (आर्थिक गतिविधि की शुरुआत के दौरान) या फिर चक्र के नीचे। बाजार मजबूत होने पर बुल मार्केट सामने आता है और आगे की संभावनाएं बहुत ही आकर्षक होती हैं। यह निवेशकों के विश्वास को मजबूत करता है, जिसमें अधिक लोग खरीदना चाहते हैं और कम लोग बेचना चाहते हैं।

इस समय, अधिक लोग खरीदने के बजाय स्टॉक बेचने में रुचि रखते हैं और निवेशकों का विश्वास कमजोर है। एक हालिया उदाहरण पिछले साल की महामारी का हो सकता है, जिसमें अधिकांश निवेशक बाजार से बाहर निकलना चाहते थे क्योंकि किसी को नहीं पता था कि महामारी कैसे निकलकर सामने आएगी। आपको बुल और बियर मार्केट की एक मजबूत समझ विकसित करनी चाहिए और दिन, सप्ताह, महीने या वक्त वक्त पर इनके बारे में पढ़ना चाहिए। ऐसा करने का एक अच्छा विचार प्रासंगिक पुस्तकों का अध्ययन करना भी है जो इस तरह की अवधारणाओं में तल्लीन हैं। यदि आप ट्रेडिंग की कला सीखते हैं, तो आप बुल-रन के दौरान अपने रिटर्न को अधिकतम करते हुए एक मंदी के बाजार में भी मुनाफा कमा सकते हैं।

बाजार के उतार-चढ़ाव भरे त्रिकोण में निवेशक का नजरिया

नैतिक भावनाओं का सिद्धांत लिखते समय 1776 में एडम स्मिथ ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि दो सौ साल बाद नैतिकता और भावनाएं विपरीत धु्रवों पर होंगी।
अब भावनाओं से लोकप्रिय खबरें निकलती हैं और पूंजीवाद में नैतिकता का अभाव है। अब जो बचा है, वह है इस अर्थशास्त्री के सिद्धांत के टुकड़े। आज बाजार और कीमतों को सक्षम, अक्षम , बेतरतीब और व्यवस्थित माना जाता है।
दक्षता के जितने भी विशेषज्ञ हैं, वे आज गणित के क्रम को नहीं मानते। जो दक्षता में भरोसा नहीं रखते, वे बेतरतीब को समृद्धि मानते हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अर्थव्यवस्थाओं के वित्त के नए मॉडल की परिभाषा दे रहे हैं। एक सार्वभौम वैज्ञानिक सिद्धांत की कोशिश की बजाए बाजार का एकीकृत मॉडल तलाशने की दिशा में काम नहीं हो रहा।
बाजार की इन सभी विशेषज्ञताओं में एक बात समान है। चाहे साफ तौर पर हो, या अस्पष्ट इन सभी में एक पैटर्न दिखता है। व्यवहारवादी मानव भावनाओं के मॉडल की कोशिश कर रहे हैं तो सिद्धांतवादी बाजार सूचना के मॉडल की। बेतरतीब के पैरोकार विषम घटनाओं का इंतजार करते हैं।
व्यवहारवादी कुछ सवाल भी उठाते है, जैसे- क्या मानव मस्तिष्क की गणना की जा सकती है। बेशक, मानव मस्तिष्क की गणना की कुछ सीमाएं होती हैं। इसी वजह से मानव को शुद्ध यथार्थवादी प्राणी नहीं माना जा सकता। व्यवहारवादी कहते हैं कि मानव मस्तिष्क दोनाें तरह की बात सोचता है। उनके अनुसार मानव भविष्य नहीं देख सकता पर अतीत और वर्तमान के आधार पर भविष्य का आकलन करता है।
यही कारण है कि जब बाजार शिखर पर होता है तो क्यों हम उसके सक्षम हिस्से में होते हैं। बाजार में जब तेजी का रुझान रहता, तो हमें सिर्फ सकारात्मकता दिखती है। जब बाजार गिरता जाता है तो हम सिर्फ नीचे की ओर देखते हैं। यहां तक कि हमें बाजार का निचला तल भी नजर नहीं आता। मानव मस्तिष्क का पक्षपाती नजरिया बताता है कि क्यों इंसान ज्यादा या कम प्रतिक्रिया करता है।
जब हम बाजार का शिखर नहीं देख सकते तो हम यह भी फैसला नहीं कर पाते कि बाजार कितना और कहां तक चढ़ेगा। यही कारण है कि हम कम प्रतिक्रिया करते हैं। जब हम बाजार के गिरावट के हिस्से में रहते हैं, तो हमें यह नजर नहीं आता कि आखिर कहां तक गिरेगा और हम अतिप्रतिक्रिया करते है। व्यवहारवादी इसे संवेग बताते हैं और उन्हें बाजार का शिखर नहीं दिखाई देता।
अगर हम बाजार के त्रिकोण की दो भुजाओं को देखें और इनमें एक को बाजार की बढ़त और दूसरी को गिरावट दर्शाने वाली मान लें तो हमको नीचा-ऊंचा-नीचा चक्र बनता दिखाई देता है। कोई भी यह देख सकता है कि कैसे गलतियां सकारात्मक और नकारात्मक ढलान पर केंद्रित हो जाती है। इसमें जो व्यवस्थित है वह सकारात्मक दिखता है और नकारात्मक का प्रदर्शन अनिश्चित और बेतरतीब होता है।
यह त्रिकोण यह भी समझाता है कि क्यों व्यवहारवादी, मौलिकतावादियों के आय अनुमानों को सकारात्मक आश्चर्य के तौर पर लेते है और जिसके आगे सकारात्मक अचरज होते जाते हैं। अप्रत्याशित आश्चर्य अतिविश्वास का सूचक है। यह इस चक्र का सकारात्मक रुझान है। बढ़त के इस चक्र को ज्यादा कारोबार, ताजा खबर और अतिमूल्य प्रतिक्रिया से समर्थन मिलता है।
इस चक्र के एक तरफ दक्षता है तो दूसरी तरफ इसे चुनौती देता सिद्धांत। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मौलिकतावादी बॉन्ड की तरह शेयरों का चुनाव करते हैं। वे कहते हैं अच्छे शेयर अच्छी कंपनियों का भंडार है। वे नियम पर चलते है ंऔर मानते हैं कि कि तेजी के चक्र में सकारात्मक चीजों का ध्रुवीकरण आरामदेह होता है।
यही कारण है कि जब भावनाएं ऊंचे दर्जे की होती है तो रिटर्न कम हो जाता है। एक वजह यह भी है कि क्यों मनोवैज्ञानिक विकल्प कारोबार की तुलना किसानों से करते है। क्योंकि किसान नकदी फसल के साथ ज्यादा जोखिम लेता है और गिरावट से सुरक्षा करता है।
इसी त्रिकोण से यह भी समझा जा सकता है कि जब बाजार गिरा होता है तो क्यों बायबैक (कंपनियों द्वारा अपने शेयरों की पुनर्खरीद)बढ़ जाते हैं और क्यों ज्यादा प्रतिक्रिया की जगह कम प्रतिक्रिया होती है। हालांकि बायबैक बेहतर प्रदर्शन करते हैं, पर निवेशकों की उन पर कम ही नजर होती है। लाभांश मिलना या छोड़ देना भी कम या ज्यादा प्रतिक्रिया का नमूना है।

ट्रेंड लाइन के आधार पर कैसे समझें निवेश का पैटर्न?

ट्रेंड लाइन एक प्रकार का तकनीकी संकेत है, जो दर्शाता है कि शेयर का भाव किस दिशा में जा रहा है.

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तुलनात्मक रूप में सपाट ट्रेंड लाइन दर्शाती है कि शेयर का बर्ताव सामान्य है और वह समान रुझान लंबे समय तक जारी रख सकता है.

जब बाजार में तेजी हावी होती है और यह अगली गिरावट का आधार तय करती है, तो ऐसी स्थिति में ट्रेड लाइन ऊपर बढ़ने के साथ-साथ हमेशा सपोर्ट स्तर प्रदान करती है, जो समय के साथ बदलता रहता है. इस स्थिति में ऐसी ट्रेंड लाइन के करीब की कीमतों पर खरीदारी करना फायदेमंद रहता है.

हालांकि, यदि सपोर्ट स्तर पार हो जाता है तो गिरावट दर्ज की जा सकती है. ऐसे में कारोबारियों को इसी ट्रेंड लाइन पर अपनी स्टॉप लॉस कीमत निर्धारित करनी चाहिए. इसी प्रकार गिरावट के हावी रहने पर सपोर्ट स्तर की जगह रेसिस्टेंस दर्ज किया जाता है. निवेशकों को इस दौरान बिक्री करनी चाहिए.

investment-analysis

एक खास बात है कि कारोबारियों को वॉल्यूम को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. ट्रेंड लाइन पर किस कीमत पर क्या वॉल्यूम रहता है, यह आंकलन आपको कई बातें समझा सकता है. अमूमन अधिक वॉल्यूम का अर्थ होता है कि शेयर का मौजूदा दौर (तेजी या कमजोरी) जारी रहने वाला है.

यदि ट्रेंड लाइन टूट जाए तो
यदि किसी शेयर की ट्रेंड लाइन टूट जाती है या खंडित हो जाती है, तो माना जाता है कि उस शेयर से निवेशकों की उम्मीद बदल गई है. गिरावट दर्शा रही ट्रेंड लाइन का टूटने का अर्थ है कि शेयर खरीदारी के संकेत दे रहा है और तेजी दिखाने वाले ट्रेंड लाइन टूटने का अर्थ है कि शेयर को बेचना बेहतर होगा.

दोनों ही मामलों में स्टॉप लॉस रखना चाहिए. इस तरह के मामलों में भी वॉल्यूम काफी महत्वपूर्ण हो जाती है और हलचल तब अधिक होगी जब ट्रेंड लाइन टूटने के साथ वॉल्यूम में भी इजाफा हो.

ट्रेंड लाइन से जुड़े एंगल

यदि किसी शेयर की ट्रेड लाइन में एकाएक तेजी देखने को मिलती है, तो इसका अर्थ है कि वह शेयर ऊफान पर है. यह भी संभव है कि शेयर की तेजी ज्यादा समय तक जारी न रहे. इसे एक उदाहरण के साथ समझते हैं.

Ril Chart

दिए गए चार्ट में रिलायंस इंडस्ट्रीज की ट्रेंड लाइन है. लाल निशान वाली ट्रेंड लाइन दिखा रही है कि शेयर में एकाएक तेजी आई है, मगर कुछ ही समय बाद यह फिसल गया, मगर शेयर की थोड़ी-बहुत तेजी जारी रहे.

दूसरी तरफ, तुलनात्मक रूप में सपाट ट्रेंड लाइन दर्शाती है कि शेयर का बर्ताव सामान्य है और वह समान रुझान लंबे समय तक जारी रख सकता है. इसके लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज के चार्ट में हरी रेखा पर गौर करें.

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शेयर बाजार की गिरावट के समय म्यूचुअल फंड में निवेश कैसे होता फायदेमंद, एक्सपर्ट से समझिए

बाजार की गिरावट के समय एसआईपी बंद कर और पुरानी यूनिट बेचकर कुछ लोग बड़ी महंगी गलती करते हैं.

बाजार की गिरावट के समय एसआईपी बंद कर और पुरानी यूनिट बेचकर कुछ लोग बड़ी महंगी गलती करते हैं.

बाजार में बाजार चक्र के रुझान को समझना तेजी हो या गिरावट, दोनों मौकों पर एसआईपी सबसे ज्यादा प्रभावी होती है. म्यूचुअल फंड में जब आप निवेश करते हैं त . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : May 02, 2022, 12:40 IST

Investment Tips : दुनियाभर के साथ साथ भारतीय शेयर बाजार भी इस समय गिरावट में चल रहे हैं. मार्केट में गिरावट के वक्त अक्सर लोग पैसा निकालने लगते हैं या निवेश रोक देते हैं. म्यूचुअल फंड की एसआईपी में भी लोग निवेश रोक देते हैं. लेकिन एक्सपर्ट कहते हैं कि ये गलत निवेश रणनीति है. बाजार में तेजी हो या गिरावट, दोनों मौकों पर एसआईपी सबसे ज्यादा प्रभावी होती है.

म्यूचुअल फंड में जब आप निवेश करते हैं तो आपको यूनिट मिलती है और बाजार की गिरावट में आपको ज्यादा यूनिट मिलती है. मतलब जब बाजार आगे चढ़ेगा तो आपको ज्यादा सामान्य से ज्यादा रिटर्न मिलेगा.

ये गलती न करें

मार्केट एक्सपर्ट के मुताबिक, बाजार की गिरावट के समय एसआईपी बंद कर और पुरानी यूनिट बेचकर कुछ लोग बड़ी महंगी गलती करते हैं. आसान शब्दों में कहें तो आप कोई चीज ऊंची कीमत पर खरीद कर कम कीमत पर बेच रहे हैं. जब आप एसआईपी में निवेश की बात करते हैं तो गिरावट के पूरे चक्र को देखिए, वह चक्र चाहे जितना लंबा चले. लंबे समय में इसी तरीके से आप निवेश पर ज्यादा रिटर्न पा सकते हैं.

यह भी पढ़ें- LIC IPO GMP: तेजी बढ़ रहा आईपीओ का ग्रे मार्केट भाव, एक्सपर्ट से समझिए निवेश करें या बचें ?

गिरावट में निवेश करें

मार्केट ट्रेंड के मुताबिक बाजार की गिरावट के बाद तेजी आती ही है. लिहाजा मार्केट के गिरावट और तेजी को समझिए और निवेश करिए. गिरावट के दौर में बाजार को समझना मुश्किल होता है, लेकिन स्टॉक जमा करने के लिए यही समय सबसे अच्छा होता है. बाजार में जितनी गिरावट आएगी, एसआईपी के लिए वह उतना ही अच्छा होगा. कम पैसे में आप ज्यादा यूनिट खरीद सकते हैं.

एसआईपी बढ़ाते रहें

जैसे-जैसे आमदनी बढ़ती है, एसआईपी में निवेश बढ़ाना चाहिए. इसके लिए टॉप अप का विकल्प चुन सकते हैं. उदाहरण के लिए हर साल आप निवेश की राशि टॉप अप के जरिए 5,000 रु. प्रतिमाह बढ़ा सकते हैं. इससे आप आर्थिक लक्ष्य को जल्दी हासिल कर सकेंगे.

एसआईपी हमेशा संपत्ति बनाने का महत्वपूर्ण जरिया रहे हैं. निवेशकों की बदलती जरूरतों के मुताबिक इंडस्ट्री ने भी एसआईपी में बदलाव किए हैं. इसलिए मौजूदा माहौल में एसआईपी से निकल कर निवेश को बर्बाद ना करें. बल्कि निवेश बढ़ाएं. समय के साथ आपको पता चलेगा कि यही निवेश के लिए सबसे प्रभावी रणनीति है.

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