जब बिटक्वाइन की शुरूआत हुई तो लोगों को इस बारे में ज्यादा समझ नहीं थी और इसका मूल्य कम था। परन्तु महामारी के दौरान पिछले वर्ष लाकडाउन हुआ तो सरकारों ने कई तरह के प्रोत्साहन दिए, तब यूरोप, अमेरिका, कोरिया, जापान आैर चीन में अनेक आनलाइन निवेशक बाजार में उतरे। क्योंकि उन्हें सरकार से आर्थिक क्रिप्टो करेंसी का बुलबुला मदद मिल रही थी, ऐसे में लोग उन पैसों से इसे खरीदने लग गए। क्रिप्टो मुद्रा पारदर्शी नहीं है। भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में निवेशकों के लिए निवेशक सुरक्षा निधि होती है। यदि निवेशक का पैसा डूब जाता है तो एक्सचेंज उसकी क्षतिपूर्ति करवाता है, सेबी इसका विनियमन करता है परन्तु डिजिटल मुद्रा का किसी एक्सचेंज के साथ कोई विनियमन नहीं है। ऐसे में यदि आपका पैसा डूब जाए तो किसी की कोई जवाबदेही नहीं है। इसका मूल्य गिरने से निवेशकों को काफी नुक्सान पहुंचा है। इसका मूल्य गिराने के कारणों में चीन द्वारा अपने वित्तीय संस्थानों और पेमेंट कम्पनियों को क्रिप्टो करेंसी से संबंधित लेन-देन या अन्य किसी प्रकार की सेवा देने के लिए प्रतिबंधित करना भी रहा। यह खबर बाजारों में फैलते ही पैनिक सेलिंग शुरू हो गई। देखते ही देखते कुछ ही घंटों में क्रिप्टो करेंसी सिर के बल पर गिर गई। इसकी कीमतों में गिरावट के लिए अकेला चीन ही जिम्मेदार नहीं। पिछले हफ्ते इलैक्ट्रिक कार बनाने वाली कम्पनी रेस्ला क्रिप्टो करेंसी का बुलबुला के मालिक और दुनिया के सबसे अमीर आदमी एलन मस्क ने यह घोषणा की थी कि पर्यावरणीय नुक्सान को क्रिप्टो करेंसी का बुलबुला देखते हुए अब अपनी कार की बिक्री के लिए बिटक्वाइन को टेस्ला को पेमेंट मोड के रूप में स्वीकार नहीं करेगी। हालांकि इससे एक हफ्ते क्रिप्टो करेंसी का बुलबुला पहले उन्होंने बिटक्वाइन का पेमेंट के रूप में इस्तेमाल किए जाने को लेकर स्वीकृति दी थी। इससे भी निवेशक भ्रम की स्थिति में आ गए। एलन मस्क पहले बिटक्वाइन की बड़ी तारीफ करते थे लेकिन अन्य क्रिप्टो करेंसीज आने के बाद उनका रुख बदल गया।
फूट गया क्रिप्टो करेंसी का बुलबुला
आभासी क्रिप्टो करेंसी का बुलबुला मुद्रा बिटक्वाइन की निवेश की दुनिया में काफी चर्चा हो रही है। कुछ समय पहले से बिटक्वाइन की कीमत आसमान को छू रही थी लेकिन अचानक इसकी कीमत में 30 फीसदी से ज्यादा गिरावट आ गई। ऐसे में स्वयं निवेशक यह सवाल करने लगे हैं कि क्या बिटक्वाइन समेत अन्य क्रिप्टो करेंसी का बुलबुला फूट गया है? 19 मई को बिटक्वाइन, इथेरियम,डॉजकाइन समेत लगभग सभी क्रिप्टो करेंसी में गिरावट देखी गई। इसके पीछे कई कारण हैं। क्रिप्टो करेंसी को आनलाइन बेचा-खरीदा जाता है। नोट सरकारें छापती हैं और मुद्रा का उठना-गिरना बना रहता है। डिजिटल मुद्रा की शुरूआत 2009 में की गई, जो किसी सरकार के अधीन नहीं है। बिटक्वाइन की खरीद-फरोख्त की कोई आधिकारिक व्यवस्था भी नहीं है। यह किसी सिक्के या नोट की तरह ठोस रूप से आपकी क्रिप्टो करेंसी का बुलबुला जेब में नहीं होती, यह पूरी तरह से आनलाइन होती है और बिना किसी नियमों के इसके जरिये व्यापार क्रिप्टो करेंसी का बुलबुला होता है। भारत में तो 2018 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने क्रिप्टो करेंसी का लेन-देन का समर्थन करने को लेकर बैंकों और विनियमित वित्तीय संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया था। आरबीआई ने डिजिटल करेंसी के कारण साइबर धोखाधड़ी के मुद्दे को उठाया था। लेकिन मार्च 2020 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आरबीआई के प्रतिबंध के खिलाफ फैसला सुनाते हुए सरकार को कोई निर्णय लेने से पहले इस मामले पर कानून बनाना चाहिए। पिछले महीने आरबीआई ने एक बार फिर कहा था कि वे भारत की खुद की क्रिप्टो करेंसी को लाने और क्रिप्टो करेंसी का बुलबुला उसके चलन को लेकर विकल्प तलाश रही है। सरकार ने साफ किया कि वे क्रिप्टो करेंसी को रखने वालों को इसे बेचने के लिए वक्त देगी। ऐसा कोई आंकड़ा हमारे पास नहीं है कि कितने भारतीयों के पास क्रिप्टो करेंसी है या कितने लोग इसमें व्यापार करते हैं। यह निश्चित है कि भारतीयों ने भी डिजिटल करेंसी क्रिप्टो करेंसी का बुलबुला में निवेश किया हुआ है और महामारी के दौरान इसमें बढ़ौतरी हुई है।
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